गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इस दिल में अरमान बहुत है।

जानने वालों की पहचान बहुत है।

दर्द देने वाले अपने ही होते हैं,
वरना दुनिया में तो यूं अनजान बहुत है।

किसको दुख बताएं अपना,
हर कोई यहां परेशान बहुत हैं।

हर एक का सर झुका है सजदे में काफिर,
सुना है सभी के अलग अलग भगवान बहुत है।

हर एक के सितारे रहे गर्दिश में
अब तो यहां आसमान बहुत है।

हर एक की कश्ती डूबी हुई है,
रेत में छुपे निशान बहुत है।

टूट चुका है राही जिंदगी के सफर में,

आज बन गए धरती पर श्मसान बहुत है।

लहरें खुद डरने लगी समुंदर से अब तो,
उठने वाले गहरे तूफान बहुत है।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.