ग़ज़ल
पहाड़ से गिर झरने हज़ार मिलते हैं
जो हो नज़र तो नज़ारे हज़ार मिलते हैं
गरीब तो रहते हाथ को पसारे ही
सुनो की अब हारे हज़ार मिलते हैं
मिले दुआ हमको तो इसी तरह सोचें
पसंद के तब प्यारे हज़ार मिलते हैं
जिन्हें नहीं सुन लो चाहिए मदद कोई
उन्हें सदा ही सहारे हज़ार मिलते हैं
प्यार करे जब कोई रहे ग़मों में ही
तन्हाइयों के तब मारे हज़ार मिलते हैं
करें कभी जब कोई तो दोस्ती गुन
खड़े तब शत्रु वहीं पर हज़ार मिलते हैं
चले न हम तो गलत राह पर अभी तक भी
तलब – नवाज़ इशारे हज़ार मिलते हैं
बुरा कहो न किसी को रहे यही कहते
नज़र उठा लख यहाँ तो सितारे हज़ार मिलते हैं
ज़मीं यही है हमारी नमन करें सब ही
फ़िदा हैं इस पर दुलारे हज़ार मिलते हैं
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’