सामाजिक

जलने वाले हैं या जलाने वाले

इस दुनिया में सभी प्रकार के लोगों का वजूद बना हुआ है। इनमें जलने वालों और जलाने वालों की संख्या खूब ज्यादा है। जलने और जलाने वालों की तादाद सभी इलाकों की ही तरह हमारे आस-पास, अपने-पराए बाड़ों और अपने-अपने क्षेत्रों में भी खूब है। कुछ दशक से इनकी संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी हो रही है।

जलने वाले आयु, लिंग, जाति आदि समस्त प्रकार के भेद से परे होते हैं। इनमें न कोई छोटा-बड़ा होता है, न कोई ऊँचा या नीचा। न्यून बुद्धि से लेकर अजीर्ण बुद्धि तक के कोई भी इसमें शामिल हो सकते हैं। पढ़े-लिखे, तथाकथित बुद्धिजीवियों से लेकर अनपढ़ लोगों तक में जलने और जलाने के मौलिक गुण न्यूनाधिक रूप में विद्यमान हैं।

 दुनिया में बिरले लोग ऐसे होंगे जो न किसी पर जलते हैं, न किसी को जलाते हैं। ऐसे लोग या तो ईश्वर के करीब हैं या फिर उस किसम के हैं जिनमें सोचने-समझने और कुछ करने की क्षमता या जन्मजात प्रतिभा नहीं हुआ करती है। ये या तो उदासीन हैं अथवा मेधा-प्रज्ञा और ईश्वरीय सत्ता के बहुत करीब।

जलने वाले लोग सभी स्थानों पर विद्यमान हैं और इन लोगों को बिना जले ही या जले पर नमक छिड़के बिना न अच्छा लगता है और न ही आनंद की अनुभूति हो पाती है। ये लोग जीवन में जहाँ कहीं मौका मिलता है वहाँ जलना आरंभ कर देते हैं।

जो जलने वाले हैं उनके बारे में यह स्पष्ट माना जाना चाहिए कि ये लोग अपने परम्परागत हुनर और सहजात प्रतिभाओं का इस्तेमाल किए बगैर चुप नहीं रह सकते। इनका हुनर समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में गाहे-बगाहे झरता ही रहता है।

अपने जीवन में ऐसे खूब लोग हमारे सामने आते रहते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये हर पल लोग औरों पर जलते ही रहते हैं। इन्हें हर पल किसी न किसी पर जलने के लिए द्वेष और ईर्ष्या का कोई न कोई ईंधन हमेशा चाहिए होता है। ये न मिल पाए तो जल-भुन कर आधे-अधूरे या मृतप्रायः अवस्था में आ जाते हैं।

कुछ लोग इनकी वजह से जले भुने रहते हैं और कुछ इनकी हरकतों से अपने आपको इतना जला हुआ महससू करने लग जाते हैं कि उनकी शक्ल पर कोयले सी कालिख ही छा जाया करती है।

इन सभी प्रकार के जलाऊ-भुनाऊ और जलने-जलाने वालों की भीड़ में खुद को इनसे बचाये रखने का सबसे कारगर तरीका यही है कि जलने और जलाने वालों की ऊर्जा को सौर या पवन ऊर्जा के स्रोत की तरह लें और इनका पूरा-पूरा उपयोग अपने जीवन के लिए ऊर्जा संग्रहण में करें ताकि इनकी ऊर्जाओं से हमारे जीवन को ऊष्मा का अहसास हो सके।

यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार इन लोगों की मूर्खताओं और हमारे प्रति जलने-भुनने की भावनाओं को भुना पाते हैं। जो लोग हमसे जलने वाले होते हैं उनके प्रति हम सकारात्मक सोच के साथ काम करने लग जाएं तो हमें अच्छी तरह पता लग जाएगा कि ये लोग हमारे कितने काम के हैं और हमारी जरा सी चतुराई हमारे लिए बहुत बढ़िया प्रचारकों की ऐसी फौज तैयार कर सकती है, जो मुफत में सारा काम करती रहती है।

इसके लिए हमें न विज्ञापनों का सहारा लेना पड़ता है न मीडिया का। ऐसे जलने वाले लोगों का अपना तगड़ा प्रचार तंत्र होता है जो अफवाहों से भी बढ़कर है। इन लोगों का नेटवर्क तेजी से बढ़ता और फैलता हुआ देश-दुनिया में धमाल और धींगामस्ती की धूम मचाता रहा है।

हमारे आस-पास तथा चारों तरफ चाट-पकौड़े और भेलपूड़ी-कचौड़ी वाली मानसिकता के लोगों का खूब बोलबाला है। इन लोगों को हमेशा चरपरी खबरों और चटपटी अफवाहों की ही जरूरत होती है। तिस पर ये लोग जलने वाले और जलाने वाली किस्म के हों तब तो बात ही कुछ और है।

जो हमसे जलते हैं या जलने वालों की जमात में शामिल हैं उन लोगों की गतिविधियों को हमारे लिए जीवन-ऊष्मा के रूप में लें और यह मानें कि ये ही वे लोग हैं जिनके जलने की वजह से हमारा फायदा हो रहा है।

जल ये रहे हैं और प्रकाशित हम हो रहे हैं। हमारे व्यक्तित्व के दीपक को प्रकाशित करने के लिए इन बातियों और ईंधन का होना नितान्त जरूरी है। इसलिए जो जल रहे हैं उन्हें जलने दें ताकि हम आलोकित होते रहें। इन्हें रोके-टोके नहीं बल्कि जहाँ मौका मिले प्रोत्साहित करते रहें ताकि इनकी जलन बरकरार रहकर हमें ऊर्जा का अनुभव कराती रह सके।

डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

M-9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com