बच्चों के विकास में बाधा है मोबाइल
कल (pediatrician) से मिलने बच्चों के अस्पताल जाना हुआ। आमतौर पर हम सालों से बच्चों को खिलौनों से खेलते देखते आ रहे है, पर वहाँ पर मैंने हर बच्चों को मोबाइल पर कार्टून देखते हुए देखा! माँ-बाप भी आराम से एक हाथ में दूध की बोतल और दूसरे हाथ में मोबाइल पकड़े आराम से अपना नंबर आने का इंतज़ार कर रहे थे। एक साल का बच्चा भी मोबाइल बंद होने पर कार्टून देखने की ज़िद्द करते रो रहा था। जैसे ही मोबाइल दिया चुप। उसे देखकर लगा बड़े तो बड़े, बच्चे भी अब मोबाइल के एडिक्ट होते जा रहे है।
माँ-बाप बच्चों की सेहत या उनके भविष्य के बारे में नहीं सोचते, बच्चों की किच-किच से छुटकारा पाने के लिए कच्ची उम्र में ही बच्चों को फोन थमा देते है। ये नहीं सोचते कि मोबाइल की लत की वजह से उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, मोबाइल, गैजेट्स और ज़्यादा टीवी देखने की लत बच्चों का भविष्य खराब कर रही है। इससे उनमें वर्चुअल आटिज़्म का खतरा बढ़ रहा है। मोबाइल फोन, टीवी, टैबलेट, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों को वर्चुअल ऑटिज़्म का शिकार बना रहे है। इन सबसे बच्चों में आटिज़्म की बीमारी बढ़ रही है, साथ ही बच्चों का सोशल कम्युनिकेशन और लोगों के साथ उनका आचरण भी प्रभावित हो रहा है। बच्चें अन्य एक्टिविटीज़ से दूर होते जा रहे है। घरेलू खेल जिनसे बौद्धिक विकास होता है उनसे वंचित रहते है। पहले के ज़माने में बच्चें गलियों, चौराहों पर धूल मिट्टी में खेला करते थे; जिससे उनकी शारीरिक कसरत हो जाती थी, अच्छे से भूख लगती थी तो ठीक से खाना भी खाते थे। अब बच्चें मोबाइल देखते रहते है और माँ खाना खिलाती नहीं, ठूँस देती है।
कई बार माँ-बाप कहते है कि हम बच्चों को मोबाइल के ज़रिए पढ़ना सिखा रहे है! जबकि ये गलत है जब मोबाइल नहीं थे तब भी बच्चें पढ़ते ही थे। दरअसल वो बच्चों को गैजेट्स की लत लगा रहे होते हैं।मोबाइल का बहुत ज्यादा उपयोग करने से बच्चों में डिप्रेशन, अनिद्रा व चिड़चिड़ापन जैसी मानिसक समस्याएँ बढ़ रही है। इसके अलावा मोबाइल की लत से बच्चों में सिर दर्द, भूख न लगना, आँखों की रोशनी कम होना, आँखों में दर्द, गर्दन में दर्द जैसी शारीरिक बीमारिया भी देखने को मिलती है।
आजकल पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते है जिसकी वजह से बच्चों पर वैसे भी कम ध्यान दे पाये है। जबकि बच्चों को सबसे ज्यादा माँ-बाप के प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। ऑफ़िस काम से थके हारे माँ-बाप खुद घर आते ही फोन पर लगे रहते है, वह बच्चों को मोबाइल से कैसे दूर रख सकेंगे? जरूरी है कि आप बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएँ, इससे बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर देगा। इसलिए पैरेंट्स भी बच्चों के सामने ज्यादा मोबाइल यूज न करें। दरअसल बच्चें जब देखते है कि अधिकतर समय मेरे पैरंट्स मोबाइल में उलझे रहते है, तो उन्हें लगता है कि शायद मोबाइल मनोरंजन का सबसे बड़ा और सुंदर माध्यम है, इसलिए वह भी मोबाइल में खोने लगते है। मोबाइल बच्चों के विकास का समाधान नहीं मोबाइल के बहुत सारे पर्याय है, बच्चों की रुचि के हिसाब से उन्हें पेंटिंग, डांस, म्यूजिक व अन्य क्लासेज़ ज्वॉइन करा सकते है ताकि मोबाइल से दूर रख सकें। मोबाइल आने वाली पीढ़ी के शारीरिक एवं मानसिक विकास में अवरोध है। ड्रग और शराब से भी नशीला नशा है मोबाइल। इस खतरे की घंटी की लत से जितना जल्दी हो सके बच्चों को दूर रखिए उसी में बच्चों की भलाई है।
— भावना ठाकर ‘भावु’