करनी का फल
अजय और सुमीत एक ही कक्षा के दो छात्र थे। सुमीत एक निर्धन परिवार का सीधा-सादा लड़का था जबकि अजय एक शहर के बड़े उद्योगपति का इकलौता बेटा था। माँ-बाप के अधिक लाड़़-प्यार ने उसे बेहद घमण्डी तथा जिद्दी बना दिया था। सुमीत पढ़ाई-लिखाई में हमेशा पीछे और कक्षा में होने वाली शरारतों में सबसे आगे रहता था।
सुमीत इन सबमें कभी भाग नहीं लेता था। वह कभी-कभी परेशान होकर इन शैतानियों की सूचना अपने मास्टर जी को दे दिया करता था, जिससे अजय को दण्ड भुगतना पड़ता। इसलिए अजय सुमीत को अपना दुश्मन समझ बैठा और उससे ईष्या करने लगा। वह हर वक्त सुमीत को सताता और उसको नीचा दिखाने की कोशिश करता। वह मन ही मन सुमीत से बदला लेने और उसे सबक सिखाने के लिए अवसर की प्रतीक्षा में लगा रहता था।
आखिर उसे मौका मिल ही गया। वह दीपावली की जगमगाती रात थी। घर-घर में रोशनियों की चमक-दमक ने चारों ओर उजाला कर रखा था। सब तरफ से आतिशबाजियों व पटाखों की धमाकों से आकाश गूँज रहा था।
अजय ने सोचा यही मौका है सुमीत को सबक सिखाने का। उसके शैतान दिमाग ने एक खतरनाक योजना बनायी। थोड़ी देर बाद सुमीत जब उसके घर के सामने से गुजरेगा तो वह अपना काम निपटा लेगा। जो भी नुकसान होगा उसे महज एक दुर्घटना ही समझा जाएगा और उस पर कोई इलजाम नहीं आएगा।
ज्यों ही सुमीत वहाँ से गुजरा, अजय ने उस पर कुछ बम फटाखे फेंके। बम-फटाखों की धमाकों के साथ-साथ दर्दनाक चीखों से वातावरण गूँज उठा।
अजय की चीखें सुनकर सुमीत तेजी से अजय की और दौड़ा। उसने शोर मचाकर आसपास के लोगों को इकट्ठा किया।
अजय लगभग बेहोशी की हालत में था। उसके हाथ-पाँव और चेहरे के काफी मांस जल गए थे। उसे तुरंत अस्पताल पहुँचाया गया। अजय के माता-पिता अपने पुत्र की ऐसी दुर्दशा देखकर रो पड़े।
अजय को सात दिनों तक अस्पताल में ही रहना पड़ा। बेहोशी की हालत में वह बड़बड़ाता- ‘‘सुमीत, मुझे माफ कर दो।’’ ‘‘सुमीत मुझे माफ कर दो।’’
सुमीत को बड़ा आश्चर्य होता कि अजय उससे क्यों माफी माँग रहा है ? होश में आने पर अजय के पिताजी ने अपने बेटे से पूछा- ‘‘अजय बेटे, जरा बताना तो तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई ?’’
अजय ने बताया कि वह किस प्रकार से सुमीत पर बम फेंकने वाला था और बम उसी के हाथ में फट गया। अजय ने सुमीत तथा अपने माता-पिता सभी से माफी माँगी और वादा किया कि अब कभी किसी के लिए न तो बुरा सोचेगा नहीं करेगा।
पिताजी ने समझाया- ‘‘बेटा, हमेशा याद रखना चाहिए जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है वह खुद भी उसमें गिर सकता है। इसलिए हमें कभी किसी के लिए बुरा नहीं सोचना चाहिए न ही करना चाहिए।”
— डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा