घर
सर्वप्रथम दादीसा (स्व: श्रीमती गीगी देवी छाजेंड़ , बोरावड़ ) के 35 वे स्मृति दिवस पर उनके चरणो में मेरा ह्रदय की अन्नत – अनन्त गहराईयों से भावों से प्रणाम !आपकी आत्मा जहाँ कही भी हो वो उतरोतर आत्मा के अन्तिम चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करे । दादीसा को हम लोग माँ कहते थे । माँ धर्म – ध्यान करने में इतने प्रबल व पाबंद थे जिसके बारे में मैं लिखूँ तो मेरे शब्द ही कम पड़ जाएँगे इसलिये कुछ पंक्तियों में ही मेरी बात रखता हूँ । माँ प्राय हर रोज़ प्रातः 3,4 बजे लगभग उठ कर बिलोंवना ( मक्खन ) की मशीन चलाते और सामायिक ले लेते थे यह एक सुखद उस समय का संयोग था की मशीन चलाने वाले कमरे में मेरा भई – बहनो के साथ सोना होता था और हम इस मशीन की आवाज सोते – सोते सुनकर समझ जाते की माँ उठ गये है मशीन चला दी है और उन्होंने सामायिक ले ली है । रत्न तो लाख मिले एक ह्रदय का सही से धन न मिला ।दर्द हर वक्त मिला । चैन हमें किसी क्षण न मिला । ढूँढ़ते-ढूँढ़ते ढल गई धूप जीवन की मगर दूसरी बार लौट के हमें बचपन ना मिला ।
घर या निवास स्थान आदि जो शरण या आराम की जगह होता है। मनुष्यों के रहने का स्थान, किसी परिवार का निवास-स्थान, निवासस्थान, आवास, मकान दीवार आदि से घेरकर बनाया जाता है। यह आमतौर पर एक जगह है जिसमें एक व्यक्ति या एक परिवार के आराम और निजी संपत्ति का भंडारण कर सकते हैं।घर में दादा , दादी , माँ , बाप , काका , काकी , भाई , बहन आदि सभी का निवास स्थान होता है । जीवन में उतार – चढ़ाव चलता रहता है कभी-कभी हम देखते हैं कि घर की परिस्थिति हमारे मनोनुकूल नहीं होती हैं । हम लाख कोशिश करते हैं पर वह नहीं बदलती हैं । हमारी सहनशक्ति भी धीरे – धीरे खोती जाती है।उस समय बहुत झुंझलाहट आदि होती है । मान लो घर में कोई दूसरा हमें गुस्से में आकर बोले तो वह सुने ही नहीं किसी भी तरह की व्यर्थ की बकवास को या फालतू आदि बातों को चुने नहीं।किसी का बोलना तो उसके ही वश की बात होता है पर उसे स्वीकार व अस्वीकार करना तो हमारे ही हाथ होता है । उस समय हम अपने कानों की खिड़की बंद कर ले घर में आदि जिससे व्यर्थ का धुआं नहीं आयेगा और हमारा मन आंगन नफरत व घृणा की दुर्गंध से भी मुक्त बन जायेगा । घर में हमेशा प्रसन रहना ,साहस रखना , निस्वार्थता रखना , संयम रखना , दया ओर सहानुभूति रखना आदि होगा तो सही वातावरण का विकास होगा । जीवन में उत्साह ओर दिलचस्पी लेना भी रखे जिससे जीवन आँगन खुशियों से भरे । आत्म विस्वास ओर आत्म निर्भरता का विकास हो । अगुआ बनने ओर नेतृत्व करने की योगयता का विकास सबमें हो । घर में सब एक – दूसरे को समझे । अपने सदगुणो का विकास करते रहे । जिससे घर में असीम सूखों का निवास बना रहेगा । जहाँ सुख – शान्ति होगी वहाँ लक्ष्मी का भी निवास होगा । काल्पनिक शंका और काल्पनिक भय हमेशा प्रगति में बाधक बनते हैं।कमजोर मन का व्यक्ति या स्वयं पर विश्वास नहीं करने वाला आदि हमेशा इसी सोच में डूबा रहता है कि कल क्या होगा।आने वाले समय में क्या होगा वो किसी को पता नहीं।पर उसका भय इंसान के सोच को जकड़ देता है ।उसकी क़ार्य शक्ति कमजोर हो जाती है और वर्तमान का चेन भी समाप्त हो जाता है।जिसके कारण इंसान स्वयं के साथ पूरे घर -परिवार की ख़ुशियों में बाधक बनता है।इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वर्तमान समय को ही लीजिये।लोग पिछले कोरोना के प्रभाव से उभर ही नहीं पाये थे कि फिर कोरोना की दूसरी लहर दस्तक दे दी।अभी और नयी लहर आ चूकी है । इसने भयंकर तबाही मचायी हैं । यह सभी जानते हैं।इसके कारण अधिकांश लोग आने वाले समय को लेकर पहले से चिंतित हैं कि आगे व्यापार कैसे रहेगा,उधार बाक़ी कैसे आयेगी और जिनके घर के सदस्य अलविदा हो गये उनको भावी जीवन की चिंता खा रही है और मन में इस तरह की अनेक – अनेक काल्पनिक भय और शंका उत्पन हो रही है । यह सत्य है की होनी कभी टल नहीं सकती।हर इंसान के जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।जो आने वाले समय में घटित होगा उसकी बुरी कल्पना और शंका से बचना है।जब जो होगा वो होकर रहेगा तो उसकी कल्पना आज करके हम अपना मनोबल कमजोर क्यों करें और अपने घर में आज का आनंद क्यों खोयें।हम्हें अपने सोच को सकारात्मक रखना है।अगर जीवन में कोई चुनोती आयी तो उसका सबको मिलकर डट कर मुक़ाबला करना है।जब मन में जज़्बा होगा और उत्साह होगा तो हर मुसीबत को घर में झेल लेंगे।इसलिये हर व्यक्ति को काल्पनिक भय और शंका से दूर रहना है और साथ में घर – परिवार के साथ आज के दिन का आनंद भी लेना है। ये बैंक बेलेंस, घर, जमीन-जायदाद, गहने धन तो है पर साथ ही साथ चिंता भी हैं। और जहाँ चिंता है वहाँ कैसी प्रसन्नता ? कैसा उल्लास ? वहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ द्वंद, उपद्रव, अशांति, और सबसे ज्यादा अराजकता यह बाहरी से ज़्यादा व्यक्ति के भीतर है। यदि मनुष्य की तृष्णा शांत हो जाये, उसे जितना प्राप्त है उसी में सन्तुष्ट रहना आ जाये तो वह कभी भी अशांत मन नहीं रहेगा। घर – घर रहेगा ।
— प्रदीप छाजेड़