मुक्तक/दोहा

दोहेमीरा-श्याम दीवानी 

थी दीवानी श्याम की,मीरा जिसका नाम।

जो युग-युग को बन गई,हियकर अरु अभिराम।।

पिया हलाहल,पर अमर,पाया इक वरदान।

श्रद्धा से तो मिल गई,जीवन को नव आन।।

लोक लाज को तज हुई,मीरा भक्तिन रूप।

खिली हृदय पावन-मधुर,मीठी-मोहक धूप।।

मीरा खोई श्याम में,श्याम बने मनमीत।

नहीं हरा पाया उसे,मीरा पाई जीत।।

इकतारा लेकर सजी,मीरा मंदिर ख़ूब।

नाची,गाई,मस्त हो,ले पूजा की दूब।।

अंधकार सब छँट गया,फैली प्रखर उजास।

मीरा ने खोया नहीं,किंचित भी विश्वास।।

मीरा ने गोपाल को,पाया अपने साथ।

किसना ने छोड़ा नहीं,मुश्किल में भी साथ।।

मीरा ने गाकर भजन,बाँटे अंतर भाव।

जीवन भर उनको नहीं,आया कोय अभाव।।

मीरा के वैराग ने,रच डाला इतिहास।

उर की शुचिता बन गई,इक नेहिल विश्वास।।

मीरा गौरव बन गईं,गाकर मंगलगान।

 होगा हर युग में “शरद”,उनका नित यशगान।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]