सावन का सच
अहा ! आया सावन, कृषक हरषाये
बागों में बहार ले कर आये
हरि हरितिमा सबके मन भाये
गरमी से भी निज़ात दिलाये ।
त्योहारों का श्री गणेश सावन में
झूले लग जाते बागों में
इठलाती बलखाती बाला के मन में
यौवन नर्तन करे मन ही मन में ।
हरी चुड़ियों से सजे कलाई
मेंहदी हाथों में रंग लाई
भीनी खुशबू मदहोश बनाये
कामदेव धरती पर आये ।
कहीं प्रलयंकारी बाढ विभिषिका
कहीं प्रचंड धूप से बने मरिचिका
सूखी धरती, दरारें भी फटी
जनता-जनार्दन कराह उठी ।
राजनेता सब हो मालामाल
बाढ़ और सूखा राहतकोष के नाम
राजकोष खाली कर देते ।
नये टैक्स लगाकर पुनः भर लेते ।
ऐसा प्यारा सावन सुहाना
आस और उम्मीद का दीप हो जगमग
भोलेनाथ को करूं जलार्पण
हे प्रभू रखना स्वस्थ यह जीवन ।
— आरती रॉय