ग़ज़ल
सपने अगर हों अपने और आँखें उधार की |
करना नहीं ए दर्दे दिल उम्मीदें बहार की ||
खुद चलानी सीख ले अपनी कश्तियाँ |
वर्ना न पार होगी यह नदिया संसार की ||
पालकी में बैठकर जो घूमते रहे |
बयान क्या करेंगे वो पीड़ा कहार की ||
जिनकी हरेक किताब में स्वार्थ हो लिखा |
कद्र क्या करेंगे वो दर्दे यार की ||
उफनती नदी है और कच्चा घड़ा तेरा |
कर न अदिये सौहणीये चाहत तू पार की ||
पाली जिन्होंने दिल में है नफरत की सर्पिणी |
क्या सुनेंगे दिल वो तेरी बातें प्यार की ||
माल बेचने को यहाँ इश्तिहार चाहिए |
सीख लो बारीकियां तुम भी बाजार की ||
दर्द के अंगारों से जब भी ये दिल जले |
देते हैं लफ़्ज मुझको ठंडक फुहार की ||
— अशोक दर्द