ग़ज़ल
दिल जमा रहे; महफ़िल जमी रहे
संघर्ष घनघोर हो मंजिल जमी रहे
दौलत-शोहरत उसके हिस्से में है बहुत
ख़ुदा करे न नजर ए क़ातिल जमी रहे
लड़ने के लिए मैं भी बेताब हूॅं कहो
है अगर दम तो मुश्किल जमी रहे
लोग चढ़ें बेशक हेलिकॉप्टर मगर
पसंदीदा में अपने साइकिल जमी रहे
हर आस्तिक के दिल में आस्था के वास्ते
गीता,कुरान और बाइबिल जमी रहे
नि:स्वार्थपूर्ण सदा परहित में अपनी
बुद्धि जमी रहे; अक्किल जमी रहे
साहित्य में तुम्हारा सदियों तलक नरेन्द्र
खूंटा जमा रहे यूं ही कील जमी रहे
— नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’