मुक्तक/दोहा

दोहार्द्धशतक

01.

वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।

अंतस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।।

02.

खून मांस भी एक है , जाति योनि भी एक।

फिर नरेन्द्र हैं क्यों नही,सभी आदमी एक।।

03.

जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।

ब्राह्मण देवता बोलिए,क्यों हैं सूद अछूत।।

04.

शत प्रतिशत अब साथियों,हुई बात ये सिद्ध।

धरती पर दूजा नहीं, मानव जैसा गिद्ध।।

05.

स्वर्ग धरा को मानिए, करिए काम अनूप।

हैं नरेन्द्र माता-पिता, स्वयं ईश के रूप।।

06.

माता तो सुमाता है, माॅं से बड़ा न कोय।

स्वर्ग,सुख,सुरभोग,सुकूं,माॅं-आंचल में होय।।

07.

लिंग भेद के तर्ज़ पर , जिन्हें रहा है बांट।

समझ मुरख मानव उन्हें, एक नदी दो घाट।।

08.

पेड़ पेड़ सब कोय कहें,प्राण कहें ना कोय।

पेड़ जगत के प्राण हैं, पेड़ न काटे कोय।।

09.

मिथ्या होता फूल है , कड़वा होता शूल।

फूल सहज स्वीकार्य हैं,अस्वीकार्य हैं शूल।।

10.

लुट रहा यहां आदमी, किसे कहूं मैं चोर।

चोर हवस की खोपड़ी,नहीं आदमी चोर।।

11.

श्रम से अपने जो रहें, देश,गांव,घर साधि।

लोग उन्हीं को दे रहें,खच्चर-गधा उपाधि।।

12.

गूंगे बहरे हैं यहां , अंधे सारे लोग।

जिंदी लाशें जल रहीं, मुर्दे बैठे लोग।।

13.

फलीभूत कर देश को, समझें खुद को धन्य।

मगर कहां सुख है इन्हें,सुख के भोगी अन्य।।

14.

क्षण क्षण बीते खेत में , वर्षा हो या धूप।

आय कृषक की ना हुई,श्रम के क्यों अनुरूप?

15.

का छोटन की बात सुने, खुदहि बड़े हम लोग।

अनहद अहम की भावना,लेके जिये ल लोग।।

16.

इक ही उल्लू से हुआ, खाक गुलिस्ता राम।

बैठें हैं हर शाख पर, क्या होगा अंजाम।।

17.

जनमानस कल्याण ही,है जिसका अस्तित्व।

माने उसके ज्ञान का , लोहा सारा विश्व।।

18.

लड़े धर्म के नाम पर, आये दिन इंसान।

देख सियासत धर्म की,हैरत में भगवान।।

19.

गला काटकर जो यहां, वहां चढ़ायें फूल।

रे नरेन्द्र मत छोड़ तू,उनको भोंक त्रिशूल।।

20.

जाति-धर्म के नाम पर, छुआछूत का रोग।

नमक छिड़कते घाव पर,आयें हैं कुछ लोग।।

21.

पूज रहें पाथर यहां , पाथर – दिल इंसान ।

जीव-जगत पाथर समझ,पाथर को भगवान।।

22.

जिस दिन सच्चा आप भी,पढ़ लेंगे इतिहास।

हो जाएगा आप ही, खाक अंधविश्वास।।

23.

रूप सज्जा या नरेन्द्र, बदलें लाख लिबास।

मगर आज भी है वही,नारी का इतिहास।।

24.

फैशन के इस दौर में, बदल रहा है गांव।

कहाॅ पुरातन संस्कृति,कहाॅ पुरातन ठांव??

25.

फैशन के इस दौर में,तन ही हुआ नकाब।

अर्धनग्नता देख रही, सुंदरता का ख्वाब।।

26.

लिए तिरंगा हाथ में, लड़ता रहा जवान।

हिंदू-मुस्लिम में रहा,उलझा हिंदुस्तान।।

27.

न्योछावर कर देश पर,अपना जिस्मो-जान।

सदा निभाता गर्व से, अपना फर्ज़ जवान।।

28.

ले नरेन्द्र कागज-कलम,लिख दे इक दो छंद।

जग आनंदित जो करें, वही सच्चिदानंद।।

29.

सुन नरेन्द्र तू ध्यान से, बोल रहा मन मंद।

व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व की,अलख विवेकानंद।।

30.

कहत कहत कबिरा चला,इस जीवन को छोड़।

लोग समझ पाए कहां, अर्थ,महत्त्व,निचोड़।।

31.

रख नरेन्द्र तू स्वास्थ्य का, इतना सा नाॅलेज।

असाध्य-साध्य हर मर्ज की,औषधि है परहेज।।

32.

सोच समझ विकसित हुई,विकसित हुआ समाज।

वहीं नरेन्दर पी गई, दुनिया लाज- लिहाज।।

33.

वर्ष गयें आते रहें, गया न गम का दौर।

किया नरेन्द्र आपने,कितना इस पर गौर।।

34.

छोड़ दिसंबर चल पड़ा, सहगामी के संग।

देख जनवरी आ गई, लेकर नया उमंग।।

35.

सुन नरेन्द्र खुद कह रहें,ख़ुदा,गाॅड या ईश।

इक शरीर में आदमी,होते हैं दस बीस।।

36.

मां हिंदी में जानिए,है अपनी पहचान।

उर्दू मौसी में वहीं,मीठी सरस जुबान।।

37.

होता है जिस छंद में,जितना अधिक प्रवाह।

होता है उतना अधिक,शब्द शब्द पर वाह।।

38.

दिल की जब होगी प्रिये,दिल से कोई बात।

तभी समझ में आएगी,दिल को दिल की बात।।

39.

करना हो तो ही करो,सोच समझ लो खूब।

छोड़ूंगा फिर मैं नही,भले कि जाओ ऊब।।

40.

हुआ बावरा यूं प्रिये,तुम्हें देखकर आज।

यूं उड़ने जैसे लगें,नील गगन में बाज।।

41.

काट रहें कैसे नरेन्द्र,हम मजनू ये सर्द।

ये लैलाएं समझ नही, रहीं हमारा दर्द।।

42.

तुम बिन मुर्दा हूं प्रिये,कर लो ज़रा यकीन।

यूं जैसे बिन जल मरें,तड़प तड़प के मीन।।

43.

लगता है हर इक मुझे,लम्हा लम्हा नीक।

होता हूं जब पास में, प्रिय तेरे नजदीक।।

44.

दुनिया है किस पर खड़ी,किसने ले ली जान।

किस के खातिर सब मरें,किस पे सब कुर्बान।।

45.

सास ससुर फुलकी लगें,चाट लगे ससुराल।

जीरा जल साली लगे, पानी पूड़ी सार।।

46.

बना बहुत स्वादिष्ट हो, पड़ा न ग़र हो नून।

सुलग जाता है क्रोध से,फिर तो सारा खून।।

47.

फर्क उसे कुछ भी नही,पड़ता है मेरे यार।

घाट तिरे माटी नही, जिसके आती यार।।

48.

जिसके आगे गले नही,किसी और की दाल।

कर सकता बांका भला, कोई उसका बाल।।

49.

दु:ख-दर्द सब बांटकर,खुशियां मोल खरीद।

चलो मनाएं साथ में, मिलकर होली ईद।।

50.

मात – पिता गुरु आप हैं,गूढ़ ज्ञान के धाम।

शीश नवा कर जोड़कर,शत-शत करूं प्रणाम।।

— नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

नरेन्द्र सोनकर

उपनाम--कुमार सोनकरन पिता का नाम--राजेन्द्र प्रसाद माता का नाम--मालती देवी अभिभावक का नाम--नरेश कुमार सोनकर स्थाई पता-- ग्राम नरैना, पोस्ट रोकड़ी, तहसील करछना, जिला प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)। पिन कोड--212307 जन्मतिथि--27-03-2001 शिक्षा-- माॅं कमला उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रोकड़ी से 1 से 8वीं तक पं.लक्ष्मी नारायण इंटर कॉलेज निदौरी से मैट्रिक मदन मोहन मालवीय इंटर कॉलेज करछना से इंटरमीडिएट इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक व संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से बीएड प्रशिक्षणरत। आप टिप्पणी--आंबेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित। दलित,स्त्री व प्रकृति विषयक मुद्दों पर बेबाक लेखन-प्रयत्न। रुचि--कविता पढ़ना-लिखना और पढ़ाना,खोज, तर्क-वितर्क विधा--कविता,कहानी,दोहा,हाइकु ग़ज़ल,माहिया,शायरी,नाटक,उपन्यास,आत्मकथा इत्यादि। सम्मान-- काव्य कुमुद,कल्प कथा व राष्ट्रीय अभिनव साहित्य मंच प्रयागराज द्वारा दशाधिक बार प्रशस्ति पत्र व सम्मान प्राप्त। रचना-प्रकाशन--अमर उजाला काव्य पटल पर 350 से अधिक,जयदीप पत्रिका में 20 से अधिक, मानस पत्रिका व आइडिया सिटी न्यूज़ बनारस से दशाधिक और हिन्दी बोल INDIA पर रचनाएं प्रकाशित। चलभाष--8303216841 Email:- [email protected]