कौशलजीवियों के लिए सुनहरा प्रभात – विश्वकर्मा योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से कौशलजीवी समाज का जीवन संवारने के लिए देशवासियों से विश्वकर्मा योजना का बड़ा वादा किया था अब जिसकी मंजूरी केंद्रीय कैबिनेट ने भी दे दी है। भगवान विश्वकर्मा आदि शिल्पी और कौशल के देवता हैं अतः केंद्र सरकार की यह योजना आगामी विश्वकर्मा जयंती 17 सिंतबर से पूरे देश में लागू की जाएगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि यह योजना 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पूर्व पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में गेमचेंजर साबित हो सकती है।
इस योजना के प्रारंभिक चरण में भारत के मूल 18 कौशलजीवी बढ़ई, नाव निर्माता, लोहार, ताला बनाने वाले, सुनार, कुम्हार, मूर्तिकार (पत्थर तराशने वाले, पत्थर तोड़ने वाले ), चर्मकार, राजमिस्त्ऱी, टोकरी, चटाई, झाडू निर्माता, बुनकर, गुड़िया और खिलौना निर्माता (पारंपरिक), नाई, माली, धोबी, दर्जी और मछली पकड़ने का जाल बनाने को आच्छादित किया जाएगा। नई विश्वकर्मा योजना से लघु उद्योग को बढ़ावा मिल सकेगा और इन पारंपरिक कौशलों को एमएसएमई श्रृंखला से जोड़ा जाएगा। इस योजना से सबसे ज्यादा लाभ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों को होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की इस योजना का ओबीसी समाज ने स्वागत किया है और उनके प्रति आभार व्यक्त किया है। अधिकांश कौशलजीवी प्रायः उपरोक्त समाजों से ही आते हैं। अगर यह योजना कारगर तरीके से धरातल पर उतारी गयी तो इस समाज का आर्थिक परिदृश्य ही बदल जाएगा तथा वह और अधिक कुशलता के साथ कार्य करने मे सक्षम हो सकेंगे। माना जा रहा है कि इस योजना से 30 लाख परिवारों की वित्तीय स्थिति में बड़ा परिवर्तन आएगा। इस योजना से छोटे व्यवसायों और श्रमिकों को अपना व्यापार बढ़ाने और आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मदद मिलेगी।
यह योजना पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए आचार संहिता लागू करने से पूर्व ही आरम्भ कर दी जाएगी और इन सभी राज्यों में इस योजना का प्रचार किया जाएगा क्योंकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में ओबीसी समाज का मत प्रतिशत अच्छा खासा है और यह वर्ग भारतीय जनता पार्टी का कोर मतदाता रहा है। मध्य प्रदेश से एक ताजा सर्वेक्षण आया है कि वहां का 61 प्रतिशत ओबीसी समाज अभी भी भारतीय जनता पार्टी को पसंद कर रहा है।
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के माध्यम से गुरु- शिष्य परंपरा के अंतर्गत कौशल कार्यों को बढ़ाने वाले कामगारों का कौशल विकास किया जायेगा तथा उन्हें ऋण सुविधा एवं बाजार तक पहुंच प्रदान करने में भी मदद की जाएगी। इस ऐतिहासिक योजना पर वित्त वर्ष 2023 -24 से वित्त वर्ष 2027- 28 के मध्य पांच वर्षों की अवधि में 13 हजार करोड़ रुपए का खर्च आयेगा।
इस योजना में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इन वर्गों का किस तरह से अधिक से अधिक कौशल विकास हो तथा नए प्रकार के उपकरणों एवं डिजाइन की की जानकारी प्राप्त हो सके। इस योजना के अंतर्गत दो प्रकार का कौशल विकास कार्यक्रम होगा जिसमें पहला बेसिक और दूसरा एडवांस होगा। इस कोर्स को करने वाले लोगों को मानदेय भी प्राप्त होगा। योजना की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि छोटे छोटे कस्बो में अनेक वर्ग ऐसे हैं जो गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत कौशल से जुड़े कार्यों में लगे हैं। इस योजना के पहले चरण में 1 लाख रुपए तक की और दूसरे चरण में 2 लाख रुपए तक की सहायता महज 5 प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण के रूप में मिलेगी।
योजना के अंतर्गत व्यवसाय को व्यवस्थित करने के बाद दूसरे चरण में 2 लाख रुपए का रियायती लोन प्रदान किया जायगा।इस योजना के अंतर्गत कारीगरों, शिल्पकारों को पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र प्रदान कर मान्यता भी दी जायेगी।सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस योजना के अंतर्गत कारीगरों को डिजिटल लेनदेन में प्रोत्साहन और बाजार समर्थन प्रदान किया जायेगा। इसके अंतर्गत आधुनिक उपकरण खरीदने के लिए 15 हजार रुपए की मदद दी जायेगी। इस योजना के अंतर्गत एक परिवार से एक व्यक्ति को ही योजना का लाभ दिया जायेगा।
सौभाग्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भी 17 सितम्बर है जो स्वयं नए भारत के शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से देश के प्रधानमंत्री बने हैं उन्होंने अपने कार्यकाल में हुए निर्माण कार्य पूर्ण होने पर सम्बंधित श्रमिक वर्ग का सम्मान किया है चाहे वह नये संसद भवन व भारत मंडपम के उद्घाटन का अवसर हो या 15 अगस्त समारोह में श्रमिकों व कारीगरो को आमंत्रित किया जाना।
एक बड़ा तथ्य यह भी है कि 2014 से पूर्व जितनी भी सरकारें रहीं वह श्रमिकों व कारीगरों के कल्याण का हल्ला तो मचाती रहीं लेकिन किया कुछ किया नहीं। विगत सरकारों की नीतियों के कारण अपने कई पारंपरिक कार्य करने वाले कारीगर विलुप्त हो गये और वर्तमान समय में जो मिल भी रहे हैं उनके कार्य में प्रायः गुणवत्ता का अभाव रहता है।यह देश के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि किसी प्रधानमंत्री ने कौशल जीवियों के हित में इतनी वृहद योजना लाकर दी है। कौशलजीवियों का सम्मान व उनकी कार्य कुशलता को बढाना ही जहां उनका सम्मान है वहीं यह भगवान विश्वकर्मा की वास्तविक पूजा भी है।
यह भी माना जा रहा है कि विश्वकर्मा योजना से देश की ढांचागत व्यवस्था में भी सुधार होगा और साथ ही आर्थिक गतिविधियां को को तेज करने और पर्यावरण सुरक्षा पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह योजना एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना पर भी खरी उतर रही है क्योंकि इस योजना से लखनऊ के कुम्हार से लेकर तमिलनाडु और केरल में मछली पकड़ने व उसका जाल बनाने वाले सभी प्रकार के कौशलजीवी आच्छादित होंगे।
— मृत्युंजय दीक्षित