राजनीति

छत्तीसगढ़ में हिन्दू विरोधी शपथ

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में बौद्ध सम्मेलन में सार्वजनिक रूप से हिन्दू देवी देवताओं को न मानने की शपथ दिलवाई गई। यह आयोजन कांग्रेस महापौर हेमा देशमुख की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विगत वर्ष में इस तरह का आयोजन दिल्ली में भी हो चुका है, यहां भी हिन्दू देवी देवताओं को न मानने, उनकी पूजा ना करने, मंदिर ना जाने, पिंड दान न करने की शपथ 10हजार से अधिक लोगों को करवाई गई थी, इस आयोजन में आप सरकार के मंत्री भी मंच पर उपस्थित थे। उस समय भी इस सभा का बहुत विरोध हुआ। यह वेसे तो कहने को बौद्ध सम्मेलन है, परन्तु यह सम्मेलन हिन्दू विरोधी तत्वों के स्थान बनते जा रहे है। सनातन धर्म की कुरीतियों के बारे में जागरण करना अलग बात है, और सनातन देवी देवताओं का विरोध अलग बात। विगत कई सम्मेलनों को देखें तो समझ आएगा कि सनातन धर्म में व्याप्त कुरीतियों के नहीं बल्कि बौद्ध अनुयायी हिन्दू विरोधी बनते जा रहे है, सार्वजनिक रुप से दिलाई गई यह शपथ यही प्रदर्शित करती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में हर पंथ को अपना प्रचार करने का अधिकार है, परन्तु जब यह प्रचार हिन्दू देवी देवताओं के विरोध में बदल जाये तो क्या करना चाहिए। 

पंथ का प्रचार करना अलग बात है और विरोध करना अलग बात। हम वर्तमान की घटनाओं को देखेंगे तो पाएंगे कि स्वीडन में कुरान का अपमान करने के कारण 2 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, कुरान का अपमान बस इतना सुनकर ही कई मुस्लिम देशों में विरोध प्रदर्शन होने लगे, कई जगह यह विरोध प्रदर्शन बहुत आक्रामक हुए। तब भारत जैसे हिन्दू बहुल देश में हिन्दू देवी देवताओं का सार्वजनिक विरोध पर हिन्दू समाज उग्र आंदोलन करेगा ? जबकि बौद्ध या बुद्ध से सनातन का कोई विरोध नही। न हमने बुद्ध को अपमानित किया न हमने उनके मठ ही तोड़ें, जबकि बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू समाज बौद्ध मठों के दर्शन बड़ी श्रद्धा से करता है। हाँ अफगानिस्तान में स्थापित बड़ी बड़ी बौद्ध प्रतिमाओं को मिसाइल और तोप द्वारा तोड़ने का काम मुस्लिम आतंकवादियों ने अवश्य किया जो तालिबान के नाम से जाने जाते है। परन्तु फिर भी बौद्ध अनुयायी ईसा और मूसा के विरोध में कभी कुछ नही कहेंगे। भूल जाएंगे बामियान में बुद्ध प्रतिमाए तोड़ने में ना गौरी गणेश, ना ही उन्हें मानने वाले हिन्दू सनातनियो का हाथ था, ये प्रतिमाये तालिबान के स्थापित होते ही ध्वस्त कर दी गई, क्योंकि इस्लाम मूर्तिपूजा को नही मानता। पूरा विश्व जानता है कि वे सदियों पुरानी विशालकाय बुद्ध प्रतिमाएं मुस्लिम आतंकियों ने मिसाइलों से तोड़ी थी।

वास्तव में बुद्ध के संदेश को उन्हें मानने वाले ही भारत में भूल चुके है, अन्य देशों में यह धर्म परिवर्तन कितना हो रहा इसका तो अनुमान नही परन्तु भारत में हिन्दू विरोध के नाम पर बौद्ध अनुयायी बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन में लिप्त है। वे यह भूल चुके है कि म्यांमार में कई बौद्ध मतावलंबियों को तलवार उठाकर रोहिंग्या को क्यों भगाना पड़ा ? क्यों रोहिंग्या मुसलमानों से वे इतने परेशान हो गए कि अहिंसा की बात करने वाले विश्व के सबसे अहिंसक पंथ को शस्त्र धारण करके अपने देश व समाज की रक्षा करनी पड़ी। यह वास्तविकता म्यांमार के वे बौद्ध जानते है, की सनातन कभी भी उनका शत्रु नही रहा, बल्कि सनातन धर्म ने ही बौद्ध पंथ को शरण दी है, परन्तु भारत में रहने वाले उनके अनुयायी अभी हिन्दू विरोध के नशे में है। यदि ऐसा ही जारी रहा और बौद्ध पंथ को सही और सकारात्मक नेतृत्व नही मिला, तो कम्युनिस्ट और हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोगों के कारण इनका पतन निश्चित है, क्योंकि अधर्मी कितना ही बड़ा क्यों ना हो उसका पतन निश्चित होता है, रामायण महाभारत में यह बात प्रमाणित है। वह रावण जैसा शक्तिशाली दानव हो या करोड़ो की सेना वाला कौरव साम्राज्य जब अधर्म के पाले में खड़े होते है तो उनकी नावँ डूबने से कोई नही बचा सकता।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश