मेहनती मोहन
शहर के पास ही एक गाँव था- जामगाँव। इसी गाँव में मोहन नाम का एक गरीब लेकिन मेहनती और ईमानदार लड़का अपनी दादी माँ के साथ रहता था।
दादी माँ बताती हैं कि जब वह मात्र डेढ़ वर्ष था तभी उसके माता-पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। उसके माता-पिता मोहन को खूब पढ़ा-लिखाकर एक बड़ा आदमी बनाना चाहते थे, इसलिए उनकी मौत के बाद दादी माँ ने सिलाई-कढ़ाई तथा दूसरों के घर झाडू-पोंछाकर मोहन को पढ़ाना शुरू किया।
मोहन को बड़ा करने तथा पढ़ाने के लिए दादी माँ ने रात-दिन एक कर दिया ताकि उसकी परवरिश में कोई कमी न रह जाए। उसकी मेहनत बेकार नहीं गई। मोहन पढ़ने-लिखने में बहुत तेज निकला। वह हर कक्षा में प्रथम श्रेणी से पास होता गया। राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में चयनित होने तथा हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम आने से उसे मेधावी छात्रों को मिलने वाली छात्रवृति और प्रोत्साहन राशि भी मिलने लगी।
मोहन जब थोड़ा-सा बड़ा हुआ तो उसने दादी माँ का दूसरों के घर काम करना बंद करवा दिया। बोला- ‘‘दादी माँ, अब मैं काम करूँगा और आप आराम करेंगी। आपको दूसरों के घर काम करते देख, मुझे अच्छा नहीं लगता।’’
दादी माँ बोली- ‘‘बेटा, अभी तुम बहुत छोटे हो। अभी तो तुम्हें खूब पढ़ना है, बड़ा आदमी बनकर अपने माता-पिता के सपनों को साकार करना है। जब तुम बड़े आदमी बन जाओगे तब मैं ये सारे काम बंद कर खूब आराम करूँगी।’’
मोहन भी कम जिद्दी नहीं था। वह अड़ गया। बोला- ‘‘खाक छोटा हूँ। ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता हूँ। अब मैं छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करूँगा और खुद भी पढूँगा, पर आपको दूसरों के घर काम करने नहीं दूँगा।’’
दादी माँ की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपने बेटे (मोहन के पिता) की याद आ गई। वह भी ऐसा ही जिद्दी था। जो कहता वह करके ही रहता। मोहन की जिद के आगे दादी माँ को झुकना ही पड़ा।
अब मोहन छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। छात्रवृति तथा ट्यूशन से मिलने वाले पैसों से दादी-पोता दोनों का खर्चा निकल जाता और उसकी पढ़ाई भी प्रभावित नहीं होती थी।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा