कविता

शिकन

आसमान में छाये जो,
मैं वो काले घन नहीं हूं,
जो कालिमा लेकर आये,
मैं वो कोई ग्रहण नहीं हूं।
मैं तो तेरा मान हूं बाबा,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।
जो वेदना देती तुमको,
मैं वो कोई चुभन नहीं हूं,
जो आहूतियां मांगे बस,
मैं ऐसा कोई हवन नहीं हूं,
मैं तो तेरा गौरव बाबा,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।
जो तेरे वंश को आगे बढ़ाये,
जानती हूं, मैं वो तेरा रत्न नहीं हूं,
जिसके जन्म की चाह थी तुम्हें,
मैं वो तेरा श्रवण नहीं हूं,
पर मैं तेरी लाडो प्यारी,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।

— अंकिता जैन ‘अवनी’

अंकिता जैन 'अवनी'

लेखिका/ कवयित्री अशोकनगर मप्र [email protected]