कविता

चांद पर तिरंगा

दिन शुक्रवार चौदह जुलाई दो हजार तेईस को
जब चंद्रयान तीन ने
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से
चांद के दक्षिणी ध्रुव के लिए
दो बजकर पैंतीस मिनट पर प्रस्थान किया था,
तीन लाख चौरासी हजार किमी.का सफर
इतना आसान भी नहीं था।
पर हमारे वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास था
सफलता के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का भी
पूरा इंतजाम पहले से ही कर लिया था।
फिर भी मन में कहीं न कहीं एक डर तो था ही।
पर जब देश साथ खड़ा हो गया
विज्ञान की सफलता के लिए धर्म भी साथ आ गया
पूजा पाठ, हवन, भजन, जाप, आरती
कीर्तन दुआओं प्रार्थनाओं का दौर भी
सफलता के लिए शुरू हो गया,
तब सारी दुविधाएं, आशंकाएं निर्मूल हो गईँ
चंद्रयान को सकुशल मंजिल मिल गई।
ऐसा लगा कि चांद भी जैसे इंतजार कर रहा था
बाँहें पसार कर खड़ा था,
और फिर तो इतिहास बन गया
दिन बुधवार दिनांक तेईस अगस्त सन् दो हजार तेईस
स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया,
जब चंद्रयान तीन ने कदम रखा,
चांद के अबूझ दक्षिणी ध्रुव पर
भारतीय तिरंगा लहराया।
तब एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों का
सिर गर्व से ऊंचा हो गया,
दुनिया भर में भारत और भारतीय तिरंगे का
बेख़ौफ़ डंका बज गया,
हर ओर खुशी से लोग झूम रहे थे,
क्या बूढ़े या बच्चे, क्या युवा या प्रौढ़
क्या नर या नारी, अमीर या गरीब
सब खुशी से नाच गा रहे थे
पटाखे फोड़ते और मिठाइयां बांट रहे थे।
और तो और हम जैसे जाने कितने
लोगों की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे।
पर भावुकतावश कुछ बोल नहीं पा रहे थे
बस ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे।
भावुकता तो प्रधानमंत्री के चेहरे पर भी दिखी
आंखों की नमी छुपाए नहीं छुपी।
पर जीवटता इतनी कि चेहरे पर
आत्मविश्वास झलक रहा था,
जैसे चंद्रयान दो की विफलता के बाद
के. सिवान के उस दिन बहते आंसू
और प्रधानमंत्री का उन्हें गले लगाकर ढांढस बंधाना
हौसलों का पहाड़ दिख रहा था।
हमारे वैज्ञानिकों के हौसले को जैसे चुनौती दे रहे थे,
वे आंसू, वो गले लगाना, वो ढांढस बंधाया
हमारे जीवट को वैज्ञानिकों हरहाल में
विफलताओं को भूल कर्म पथ पर
आगे बढ़ने का हौंसला दे रहे थे
और आज जब उन सबकी की
चार साल की दिन रात की मेहनत
उनका समर्पण रंग लाया
उन सबने मिलकर
सफलता का जब नया इतिहास बनाया।
तब देश ही क्या, विदेश में भी
अविरल खुशी का माहौल है।
कल जो चंद्रयान दो की विफलता पर
हमारा मजाक उड़ा रहे थे,
हमारे वैज्ञानिकों का उपहास कर रहे थे,
हमें तीसरे दर्जे का देश बता रहे
हमारे मिशन को फिजूलखर्ची बता
हमें हतोत्साहित कर रहे थे,
वे सब आज हमें ही नहीं हमारे देश, देशवासियों
हमारे वैज्ञानिकों, इसरो के साथ
देश के नेतृत्व को बधाइयां देते नहीं थक रहे हैं,
इसरो के कर्मयोगियों की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं।
पर अफसोस कुछ मुट्ठी भर देशी विदेशी लोग
और मीडिया संस्थान अपना मुंह काला कर रहे हैं।
पर अब वे बेचारे क्या कर सकते हैं?
जब चांद पर हमारा चंद्रयान तीन सफल हो गया
सफलता के झंडे गाड़ गौरव पा गया,
अब ये तो इतिहास में दर्ज हो गया।
असफलता की राह को ही
हमारे वैज्ञानिकों ने सफलता का पथ बना लिया
चांद पर तिरंगा लहरा दिया
सारी दुनिया को अपने कदमों में झुका लिया
देश को रक्षाबंधन का अमूल्य उपहार दे दिया।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921