लघुकथा

मास्टरजी

बिना प्रेस का कुरता- पजामा, बिखरे बाल, कंधे पर झोला, आँखो पर पुराने जमाने जैसी ऐनक, मुँह हर समय तम्बाकू से भरा हुआ, ऐसे थे उस गांव के मास्टरजी। सरकारी स्कूल, वो भी सुविधाएं रहित और उस पर समय पर शिक्षकों का न आना। जब तक कोई नया शिक्षक नियुक्त नहीं होता तो पूरे विषय पढ़ाने का जिम्मा मास्टरजी पर होता।मरता क्या न करता मजबूरन सभी विषय पढ़ाने पढ़ते थे। बच्चे भी इतने शैतान कि पढ़ाई के बजाय कक्षा में ऊधम मचाते रहते। कितने सहनशील थे मास्टरजी जो बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी शैतानियाँ बर्दास्त करते थे।

वैसे तो वे बहुत शांत स्वभाव के थे पर उनकी अगर कोई नकल उतरता तो बहुत रोद्र रूप धारण कर लेते थे। एक तो तम्बाकू मुँह में भरी होने से बच्चों को उनकी आवाज स्पष्ट नहीं सुनाई देती थी दूसरा  डर इतना था कि मजाल कोई बच्चा कुछ बीच में पूछ ले। मास्टरजी का सख्त स्वभाव ऊपरी था, वे बच्चों से बहुत स्नेह करते थे। उनके पढ़ाये हुए बच्चे अच्छे पदों पर आसीन थे।

कुछ दिन बाद मास्टरजी सेवानिवृत होने वाले थे। सभी उनकी विदाई की तैयारी में लगे हुए थे। नियत तिथि पर उनकी विदाई ससम्मान हुई। सभी ने उन्हें विदा किया। आज मास्टरजी की कुर्सी खाली पड़ी हुई थी। और बच्चे प्रतीक्षारत थे नए मास्टरजी की नियुक्ति में।

— सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।