कविता

कैसे भूलेंगे यह बरसात

चली जाएंगी यह बारिशें यह ज़लज़ले

यह नाले नदियां भी सामान्य हो जाएंगे

सब भूल जाएंगे वह पहाड़ों का दरकना

मगर जो दफन हो गए उनको कैसे भूल पाएंगे

खुल जाएंगे स्कूल बच्चे भी स्कूल जाएंगे

जो दब गए मलबे में उनको कहां से लाएंगे

जिनके मां बाप चले गए अकेला छोड़कर

वो किसके सहारे अपनी ज़िंदगी बिताएंगे

कईयों के बसेरे उजड़ गए कैसे काम चलाएंगे

लौट कर आएंगे काम से शाम को फिर कहाँ जाएंगे

बह गया जिनका घर बार परिजन पानी में

जितना चिल्लाओ बिछुड़े जो वह लौट कर नहीं आएंगे

पूरा परिवार बैठ कर खाता था चूल्हा जलता था जहां 

आज न खाने वाले हैं घर का तो मिट गया नामोनिशां

पशुओं के साथ बतियाते बीतता था जहां सारा दिन

न जाने कहाँ चले गए आज कुछ नहीं है वहां

लोग कुछ समय तक याद रखेंगे फिर भूल जाएंगे

मन्दिर में पूजा भी होगी पक्षी भी चहचहाएँगे

जिस के साथ गुज़र रही कोई नहीं जानता उसकी पीड़ा

भूलेंगे कैसे दर्द दिल के याद आने पर तो छलक आएंगे

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र