लघुकथा

रिश्ता प्यार का

बात छतीस साल पहले की है. बुधवार का दिन था. हम सब जल्दी डिनर करके आराम से चित्रहार देख रहे थे, तभी कॉल बेल बजी.
“इस टाइम पता नहीं कौन आया होगा!” कहते हुए हम दरवाजा खोलने गए.
दरवाजा खोला तो मिसेज भसीन को देखकर हमें बहुत खुशी हुई. हम दोनों नौकरी वाले थे और बच्चे मेरे स्कूल से आने के आधा घंटा पहले आ जाते थे. हमारी दुविधा हल कर दी बच्चों के स्कूल के पास रहने वाली मिसेज भसीन ने. हमारे बच्चों को संभालने के लिए उन्होंने क्रेच ही खोल दिया. अन्य बच्चे भी आने लग गए. बाकी सबसे वे पूरे दिन के 80 रुपये लेती थीं, हमारे बच्चों के 10-10 रुपये लेती थीं. इतना प्यार मिला बच्चों को कि हम निहाल हो गए. मैं एम.एड. करने गई तो बच्चों के लंच के खाने-पीने की जिम्मेदारी भी उन्होंने संभाल ली. पतिदेव निश्चिंत हो गए थे. प्यार और लगाव अकथनीय था.
उस दिन मिसेज भसीन पहली बार हमारे यहां आई थीं.
“भाई साहब, मैं एक जरूरी काम से आई हूं.” कॉफी पीते-पीते उन्होंने संकोच से कहा.
“कहिए तो सही! आपका जरूरी काम हमारा जरूरी काम है.” हमने कहा.
“सुबह गैस का कनेक्शन आने वाला है, मुझे 800 रुपये की जरूरत है, टूर से बेटा आएगा तो मैं लौटा दूंगी.” उन दिनों नेट बैंकिंग तो होती नहीं थी!
“आपकी किस्मत बहुत अच्छी है बहन जी, वैसे तो इतने रुपये हम घर में रखते ही नहीं हैं, शायद आपके लिए ही आज मुझे बोनस के एक हजार रुपये मिले हैं. आप ले जाइए और लौटाने की सोचिएगा भी मत!” पतिदेव ने एक हजार रुपये देते हुए कहा.
रात थी, इसलिए वे उन्हें घर तक छोड़ने भी गए.
गैस-कनेक्शन आते ही उन्होंने सबसे पहले हलवा बनाया और पहले हमें खिलाकर ही उन्होंने हमारे साथ बैठकर हलवा खाया.
तब से अब तक हम दूर रहें या पास, वे भाई को राखी बांधने अवश्य आती हैं.
रिश्ता प्यार का भी अनमोल होता है, केवल खून का नहीं!
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244