कहानी

पश्चाताप के आंसू

माथे की झुर्रियां कलीम के उम्र ही नहीं उनके अनुभवों की कहानी बयां कर रही थीं। पूरे गांव में उसका ही एकमात्र मुस्लिम परिवार था। कलीम की सज्जनता और आत्मीयता ने उन्हें सारे गांव का चहेता बना दिया था।जब तक शरीर में ताकत थी, तब तक उसने हर किसी के सुख दुख में बिना किसी भेदभाव के सहयोग किया। आज भी वह अपने इस प्रयास के लिए प्रयत्नशील रहता था। पर कहते हैं न कि हर समय एक सा नहीं रहता।कलीम के बेटे नदीम की संग आवारा बदमाश लड़कों से हो गई। जिससे आये दिन उसकी गलत हरकतों के कारण न केवल कलीम बल्कि गांव वाले भी परेशान रहते थे। कलीम की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करे।कलीम हर किसी से अपनी पीड़ा व्यक्त करता था, हर कोई उसे तसल्ली देकर आश्वस्त भी करता, इसके अलावा कोई कुछ कर भी तो नहीं सकता था। क्योंकि आजकल की औलादें जब अपने मां बाप का सम्मान नहीं करती , फिर दूसरों का क्या करेंगी। नदीम के हम उम्र लड़के भी उसकी हरकतों से परेशान थे, जब भी उनमें से कोई उन्हें समझाने की कोशिश करता, कलीम के उम्र और उनकी इंसानियत की दुहाई देता, तो उन्हें भी उपेक्षित करता और उसकी बातों को हवा में उड़ा देता, इसलिए एक एक कर वे सब भी उससे दूर रहने लगे थे। यहां तक की लड़कियां भी अब नदीम पर अविश्वास कर उसके सामने पड़ने से भी बचने का प्रयास करतीं। लेकिन कलीम के लिए उन सबके दिलों में आज भी पहले जैसा सम्मान जरुर बना रहा और उनसबको कलीम के दर्द का अहसास भी।आखिर एक दिन तो हद हो गई जब उसने गांव की ही एक लड़की को छेड़ दिया। गांव में कोहराम मच गया। कलीम के घर पर भीड़ जमा हो गई।कलीम की उम्र और उनके व्यवहार के कारण किसी ने उनसे किसी तरह की अभद्रता तो नहीं की, मगर सब नदीम के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की बात करने लगे।कलीम ने ग्राम प्रधान और संभ्रांत नागरिकों से बात करने के बाद खुद नदीम के खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने की बात की। कुछ लोग कलीम पर शंका करने लगे।तब कलीम ने सबसे कहा – ये माथे की झुर्रियां यूं ही नहीं आ गईं हैं। मेरा अनुभव कहता है कि यदि आज मैंने उसका साथ दिया, तो कल मुझे उसकी लाश भी देखनी पड़ सकती है। अभी उसकी उम्र भी कितनी है। लेकिन गुनाह की उम्र नहीं होती।वह गुनाह करने वाले की ही जान लेने को आतुर होता है। अभी उसे दो चार साल की सजा हो जायेगी। तो वह सुधर जाएगा और उसकी जान भी बच जाएगी।वो मेरा बेटा है इसलिए आप लोग शायद आज पहली बार मुझे पर शंका कर रहे हैं, पर वो बच्ची भी तो मेरी बच्ची है। जिसे अपने कंधों पर बिठाकर मैंने घुमाया है, अपनी गोदी में खिलाया, अपने सामने खेलते कूदते बड़ी होते देखा है। तो उसके सम्मान की धज्जियां कोई भी उड़ाये, चाहे वो मेरा ही बेटा क्यों न हो। उसे उसके गुनाहों की सजा उसे दिलाकर रहूंगा।उसने ग्राम प्रधान और कुछ लोगों के साथ थाने जाकर बेटे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के साथ शीघ्र गिरफ्तार कर सजा दिलाने का अनुरोध किया।चार दिन गायब रहने के बाद नदीम रित के अंधेरे में घर आया तो कलीम ने उससे कोई बात नहीं की । बरामदे में रोज की तरह चुपचाप लेट गया। नदीम घर के भीतर होता। थोड़ी देर में कलीम ने चुपचाप बिस्तर छोड़ा और प्रधान के घर पहुंच कर सारी बात बताई और पुलिस बुलाने को कहा।प्रधान ने कलीम को समझाने की कोशिश की कि एक बार फिर से अपने निर्णय पर विचार कर लें।तब कलीम ने कहा- बेटा तू प्रधान बन गया है,पर अनुभव में तू भी आज बच्चा है।शरीर का कोई अंग सड़ने लगे तो उसे आपरेशन कराकर निकलवा दिया जाता है, शक्ति पूरे शरीर को सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।आज नदीम की हरकत उसी सड़न जैसी है।उसे सजा दिलाकर हम उसे बचा ही रहे हैं। आखिर मैं उसका बाप हूं, सिर पर बोझ लेकर मरना या अपनी आंखों के औलाद की लाश देखने की ताकत नहीं है मुझमें। कलीम की आवाज भर्रा गई, आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी।जैसी आपकी आज्ञा काका। आप मेरे पिता समान हैं, आपने हमें हमेशा अपनी औलाद समझा है। आप जैसा चाहते हैं मैं वैसा ही करूंगा।फिर प्रधान ने थाने फोन कर पुलिस बुला लिया और नदीम को गिरफ्तार करवा दिया।पुलिस जब नदीम को ले जा रही थी, तब नदीम कलीम के कंधे पर सिर रख लो पड़ा और क्षमा मांगने लगा। कलीम ने उसे ढांढस बंधाया और कहा ईमानदारी से अपनी सजा काटकर अपना प्रायिश्चत करके आना, मैं तुम्हारी राह देखूंगाजरूर अब्बा। आगे से मैं आपको कभी दुखी नहीं करुंगा। मैं अपने अपराध का दंड ईमानदारी से सहूंगा।और फिर नदीम को लेकर पुलिस चली गई।आज गांव वालों के मन में कलीम के लिए सम्मान का भाव पहले से और भी बढ़ गया था।अगले दिन गांव के बड़े बुजुर्गो के साथ प्रधान ने समझौते की बात करते हुए कहा कि काका ने अपना फ़र्ज़ निभा दिया, अब हम सबकी बारी है। यदि वो बिटिया चाहे तो हम काका को मना कर केस वापस करा सकते हैं।नदीम भी हमारी तरह आपके घर का ही बच्चा है और मैं समझता हूं कि नदीम के भविष्य के लिए हमें ऐसा करना ही चाहिए। बाकी जैसा बड़े बुजुर्गो की राय हो। काफी विचार विमर्श के बाद सबने सहमति दे दी, लेकिन कलीम मानने को तैयार नहीं थे। किसी तरह उन्हें मनाया गया। वो तैयार हुए, मगर तब जब पीड़िता ने खुद उनसे जिद की।और फिर कई लोग थाने जाकर समझौता प्रक्रिया पूरी कराकर नदीमको छुड़ाकर ले आए।गांव में आते ही नदीम सीधे उस लड़की के घर गया और उसके पैर पकड़ कर माफी मांगी। उसने भी नदीम को माफ करते हुए कहा सुबह का भूला शाम को घर आ जाय तो उसे भूला नहीं कहते। छोटी हूं पर एक बात कहे देती हूं यदि अब आगे से आपने काका को दुख पहुंचाया तो हम क्या इस गांव का एक व्यक्ति भी आपको माफ नहीं करेगा। कलीम काका ने सबको अपना समझते हैं। तुम उनके पुत्र हो, तो तुम्हें तो इस बात का अहसास होना ही चाहिए। इस उम्र में यदि तुम उनकी देखभाल नहीं कर सकते तो छोड़ सकते हो। हम सब उनकी देखभाल बेहतर ढंग से अपने बड़े बुजुर्ग की तरह करने को तैयार हैं।हाथ जोड़े नदीम की आंखों में पश्चाताप के आंसू और होंठों बंद थे।आज गांव वालों के मन में जहां कलीम के लिए सम्मान का भाव पहले से और भी बढ़ गया, वहीं नदीप को लेकर हो रही चिंताएं भी समाप्त हो गईं।कलीम के चेहरे पर अब संतोष का भाव झलक रहा था।

*सुधीर श्रीवास्तव

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