गीतिका/ग़ज़ल

गजल

गुनाह किसी और की सजा क्यूँ मुझे मिले

रिश्तों की बात पर जीती बाजी हार चले

जिनके घर बने है यहाँ शीशे की दीवार से

उनके लफ्ज़ भी मौके पर थे बेशुमार चले

किसके हिस्से दौलत  कितना प्यार मिला

ज़ीस्त का हिसाब यूँ  बेसबब गुजार चले

इश्क़ का नया कलमा रोज हम पढ़ा करते

अब तो सिर्फ बनकर खूब  कारोबार चले

बहुत सस्ती है जमीर अब इस जमाने की

बिककर सरेआम बचाने वो दागदार चले

उल्फत में लुटा कर देखा चैनों गम अपने

करार  की बात करके दिल  बेकरार चले

हुआ हमें गुरुर था इश्क़ कितना मेहरबान

नजरें बचाकर मुझसे  देखो मेरे यार‌ चले

— सपना चन्द्रा

सपना चन्द्रा

जन्मतिथि--13 मार्च योग्यता--पर्यटन मे स्नातक रुचि--पठन-पाठन,लेखन पता-श्यामपुर रोड,कहलगाँव भागलपुर, बिहार - 813203