कविता

स्वयं सिद्धा हो तुम नारी!

नारी तुम हो नारायणी,

देवी, दुर्गा, शक्ति धारिणी,

अबला नहीं, बन सबला,

दुर्जनों की संहारिणी।।

ले खड्ग, तेज कटार,

शौर्य, वीरता की धार,

दुराचारी का कर अन्त,

सहना नहीं अत्याचार।।

जगतजननी, माता, भगिनी,

स्वयं सिद्धा, वीरांगना सिंहनी,

स्वावलंबी, बन आत्मनिर्भर,

सभ्यता, संस्कृति रक्षिणी।।

संस्कारों से सजाती जीवन,

मृदुल, कोमल, भाव स्पंदन,

प्रेम, दुलार निर्मल निर्झरणी,

शक्ति, भक्ति, प्रेम गूँजन।।

थाम ले आत्मविश्वास दामन,

हौसले से भर ऊँची उड़ान,

अंतरिक्ष से सागरतल तक,

नव उपलब्धियां, हो नारी सम्मान।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८