कविता

शिक्षक जो न होते

बड़ा सरल यह सोचना

कि यदि शिक्षक न होते तो 

आज क्या होता?

ऐसे ही मान लें तो कुछ नहीं होता

सिवाय ज्ञान के अंधकार

हर ओर अशिक्षा असभ्यता का प्रसार होता

शिक्षा कला साहित्य संस्कृति का लोप होता

चिकित्सा और विज्ञान भी औंधे मुंह पड़ा होता।

इतिहास का नाम तक मिट गया होता

नया इतिहास सिर्फ अपवाद में ही बनता।

विकास की बातें महज कोरी कल्पना भर होतीं

नई खोजों की बात तो हमारे सपने में भी न होती

आवागमन के साधन और

नित नई तकनीकों का विकास तब नहीं होता

सूरज, चांद अंतरिक्ष पर जाने की बात

सिर्फ पागलपन कहलाता,

दैनिक जीवन भी आदिमानव युगीन होते

शिक्षक न होते तो शायद हममें आपमें से 

जाने कितने दवाओं के अभाव में मर खप गये होते।

जाने किस किस से कभी भेंट तक नहीं होते।

और तो और शायद हम पेड़ पौधे और

अखाद्य खाकर जी रहे होते,

नंग धड़ंग रहते या फिर घास फूस से

अपने बदन ढक रहे होते 

रिश्ते नाते हमें न समझ आते

अपने अपने तन की भूख 

अपनी ही मां बहन बेटियों के तन से

खेलकर मिटा रहे होते,

कड़ुआ पर सच तो यह है कि आप हम 

इंसान तो क्या जानवर से भी गये गुजरे होते।

यदि शिक्षक ही नहीं होते 

तो शायद आज हम आप अपना अपना जीवन

अंधकार में दर बदर भटकते हुए बिता रहे होते 

और जानवरों की तरह

आपस में ही लड़ झगड़ कर मरते होते। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921