कविता

हे त्रिलोकी

हे त्रिनेत्रधारी हे त्रिलोकीहे अविनाशी से औघड़दानी हे शिवकाशी, हे चंद्रधारीतुम ही शिव हो, तुम ही शव सम होहे गौरापति, तुम ही स्वामी त्रिलोक होतुम्हीं विनाशक, तुम ही मुक्तिदातातुम शांत सौम्य शीतल होतुम ही हर प्राणी के रक्षक हो।हे तीन नयन वाले महाकालतुम बड़े ही भोलेभाले हो,निर्मल मन से जो तुम्हें पूजतातुम उसके सब दुःख हरते हो,क्रोध तुम्हें जब आ जायेऔर तीसरा नेत्र जब खुल जायेतो विनाश का तांडव नृत्यसारी दुनिया को नजर आये।हे त्रिलोकी बनी रहेकृपा तुम्हारी जन जन परबोल रहे हैं हम सब हीबम बम भोले जय शिवशंकरकार्तिकेय, गणेश के पिता हो तुमपहाड़ पर रहते हो तुमभांग धतूरे में मस्त मग्नमौन अधिक रहते हो तुम।नमन वंदन हम करते हैंहम पर अपनी कृपा करो,बरसाओ करुणा का सागरजन जन का अब उद्धार करो भूल हमारी भूल प्रभुहम सबका कल्याण करो।हे त्रिलोकी नाथ तुम अपनेनाम का तो तुम ध्यान करोहम जय जयकार तुम्हारी करतेइस पर भी अपने कान धरो।हे प्रभु जगत कल्याण करो।एक बार फिर से प्रभु डमरु का जयनाद करो।

*सुधीर श्रीवास्तव

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