गीतिका/ग़ज़ल

थोड़े जज़्बात थोड़ी गुफ़्तगू

थोड़े जज़्बात थोड़ी गुफ़्तगू से दिल मचलता है।

दो घड़ी पास बैठ जाने से ही  सुकून मिलता है।

हसरत भरी निगाह हो तब होंठों से संवाद होते,

दिल से अशांत लम्हों का‌ ही जनून निकलता है।

जज़्बात में स्पंदन हो तब चाह होती गुफ्तगू की,

राज छुपा दिल का बताने को दिल पिघलता है।

गुफ़्तगू सिखाता सदा जीवन की धार पर चलना,

जज़्बात अच्छे हो सफ़र भी अच्छा निकलता है।

चौपाल सजती थी यहाॅं पर बुजुर्गों के झुरमुट से,

अब ना रही बात ना मसले का हल निकलता है।

जज़्बातों की गहमागहमी में पिछड़ गया जमाना,

अपने घर से बाहर शख्स कोई नहीं निकलता है।

थोड़े जज़्बात  थोड़ी गुफ़्तगू होती रहे घर  घर में,

भाईचारा आपस का सौहार्द तब ही निखरता है।

कुंठाओं का बोझ दिल पर बिठा लिया पत्थर‌ सा,

स्नेह का उत्स भला तब  कहाॅं दिल से फूटता है।

होगी हसरत कभी पूरी  सोची है  दिल में अर्से से

यही उम्मीद लिए हर आदमी घर से निकलता है।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995