कविता

एकल परिवार

सिमट सिमट 

अब कितना सिमटेंगे

 दस बारह से होते होते

 एक पर आ गए 

 कभी गर्व था 

 परिवार पर अपने

 कहते नहीं अगाथे थे 

 सीना चौड़ कहते थे

 हम हैं चार  भाई

 छः बहनें

 बहुत बड़ा परिवार हमारा 

 आज कैसे बतलायें

 यह मेरा भाई

 यह है मेरी बहिना

 न मामा है

 न बुआ

 न चाचा

 न कोई ताऊ

 बिन सब इनके अब कैसे सजे बारात 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020