हिन्दी अपनाएं कभी न शर्माएं
प्रकृति तत्व है हिन्दी इसे तुम जानों
वेद सारांश है हिन्दी इसे तुम मानों।।१।।
जमीं से आसमां तक सार है हिन्दी का
विश्व बन्धुत्व परम्परागत भाव इसका।।२।।
सरल और सहज स्वभाव की जननी
सबके प्रीत की है यह अनोखी लेखनी।।३।।
नयनों की नैतिकता से विख्यात जीवनी
मुख मण्डल से निकली श्रृंगार पावनी।।४।।
रसों की प्रधानता रश्मों की विधानता
रहस्यों की प्रवल ज्वाला छन्दों की सरिता।।५।।
इससे हर्षित होकर यह पथ अपनाएं
रत्नों से सजी बिन्दी इसे मस्तक पर लगाएं।।६।।
राष्ट्रीयता के गौरवशाली इतिहास रचे
भारत माता के होनहार बच्चे – बच्चे।।७।।
हिन्दी सूक्ष्म आदर्शों की अद्भुत पाठशाला
जपता है सारा विश्व इसकी अन्दरूनी माला।।८।।
खेत खलिहानों से भरी प्रकृति की परिपाटी
चारों दिशाओं में गुणवत्ता की प्रसिद्ध यह माटी।।९।।
पाषाण युग से आधुनिक युग की पथ प्रदर्शक भाषा
कण-कण में अंकुरित उभरती हिन्द की परिभाषा ।।१०।।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ