नाविक बन पतवार
एक दूजे की मदद का, कर आदान प्रदान
होवे ना इसमें कभी, कोई भी अभिमान
मित्रता में न कभी चले, कोई भी तकरार
थामे रहे आपस में, नाविक बन पतवार
रिश्ते अब ऐसे रहे, जैसे होते काॅंच
आवे नहीं रमेश जी, इस पर कोई ऑंच
धन जिसने देखा नहीं, वहाॅं सदैव अभाव
जीवन भर रहे उनके, देखो वहाॅं तनाव
शकुनी मामा की तरह, चलता रमेश चाल
ऐसे में करता नहीं, रिश्तों का वह ख्याल
होता है सैनिक यहाॅं, सच्चा पहरेदार
देश हेतु जान अपनी, करता है कुरबान
लिखने से पहले करें, आप जाॅंच पड़ताल
तभी रचनाएं आपकी, होगी जी खुशहाल
छल, कपट का घटे नहीं, बढ़ता देखो रोग
लालच के कारण इसे, छोड़ न पाते लोग
ज्ञान ज़रा भी है नहीं, बाॅंचे ज्ञान पुराण
कहने को कहते सदा, करता जग कल्याण
अब मिलेंगे पग-पग पर, तुझको रमेश शूल
अपने परिश्रम से उसे, कर सकता तू फूल
— रमेश मनोहरा