कविता

जीत का ख्वाब बुनना

हार हो, या जीत हो,

हौसला बुलंद हो,

कोशिश हो दुबारा, 

जीत की झंकार हो।।

राहों में होंगे कंटीले शूल,

बिछा दो सुरभित फूल,

आंधी, धूल से न घबराना,

भय-भ्रांति हो निर्मूल।।

गिरकर संभलना सीखें,

हिम्मत से फैलाये पाँखें,

सतत अभ्यास, साधना,

जय-विजय गुणगान लिखें।।

हार से न कभी घबराना,

जीत का ख्वाब बुनना,

सुधार श्रमसाध्य करे,

जीत का हुंकार भरना।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८