चिट्ठी का अस्तित्व
कहां गये वह कागज के नीले पन्ने,
जिसमें लिखे जाते थे दिल के जज़वात,
पूछी जाती थी कुशलता की बातें
की जाती थी शुरूआत चरण वन्दना से,
बीच में लिखी होती पूरी जिन्दगी,
शब्दों में छिपा होता था प्रियतमा का दर्द,
पत्नी की सारी शिकायतों की कहानी
मां का दर्द भरा दुलार ,पिता का पैसा भेजने की गुहार,
लिखी जाती थी उसके गांव के सूखे की विभीषिका
या बाढ़ की भयानकता
पर अब तो इस डिब्बे को छू लो
बस दो मिनिट का खेल है खोलो,पढ़ो ,लिखो और मिटा दो
सब कुछ सिमट गया जज़वात भी, याद भी,
और अपने आप में आदमी भी…
— डा. मधु आंधीवाल