मौसम की बरसात*
कयूँ ये मन उदास सा रहने लगा है,
अब तो बादलों से भी पानी छलकने लगा है ।
अपना पन पाना हर एक हृदय की आस,
ऐ! वर्षा तुने मिटा दी इस धरती की प्यास,
इस नम पल में मैं कैसे हंसू,
अब तो पत्ते भी बहा रहे हैं आँसू,
वर्षा के बाद सभी फूल खिल उठे,
लेकिन अभी भी कुछ मन रह गए अनूठे,
इस भीड़ में कहीं खो न जाऊँ,
इस बात का डर है, परंतु
मेरे आज में ही मेरा कल है,
जानती हूँ कि रास्ता मुश्किल है…..
अचानक आती है हवा की तेज आवाज,
वही था एक अलग सा एहसास,
राहें नहीं मिलती बैठे रहने से,
कुछ नहीं होगा सिर्फ कहते रहने से…
— आरुषि (कक्षा 9)