अधूरा_
दिन सिमटने लगे,
विस्तार अपना मिटाकर
काँस के फूल
उत्सवों के
प्रतिनिधि बने,
हरे-भरे खेत
सोने की बालियां पहने
घरों में जाने का
इंतजार करने लगे,
उमस भरी दुपहरी
कुम्हलाने लगी,
तपता-कुढ़ता मौसम
शरद का प्रेम
स्वीकारने लगा,
तपती धरती
शीत के आगमन से
हौले से मुस्कुराने लगी
सब कुछ है यहाँ
फिर भी कुछ अधूरा है
पूनम का चाँद ,
आधा तुम्हारा
आधा मेरा है….!
— सविता दास सवि