/ समता के तल में
कई परिभाषाएँ आती हैं
हमारे सामने जिंदगी की
अपने – अपने अनुभव से
निकलता है निष्कर्ष निज के
देश, काल, ऋतु, परिस्थितियाँ
सिखाती हैं हमें हर पल
जिंदगी की एक नई परिभाषा
कोई झूठ खाता है तो
कोई सच को निकालता है
लेकिन इंसानों के समाज में
अपने को श्रेष्ठ मानकर चलना
सबसे बड़ी धोखा है कि
कोई दिमाग से चलता है तो
कोई दिल से, श्रम से,
कोयल का मान देकर
कौए को भगाना, दुत्कारना
गलत है वह निर्णय जगत में
आहार-विहार से, व्यवहार से
होता नहीं किसी का समान भूमि,
उतार – चढ़ाव, सबका होता है
तोला नहीं जाता सबका यहाँ से
समतल पर सबको स्वीकारना
समभाव स्थापित करना उन्नति है
वह सच्ची मानसिक परिणति है
शिखर पर या किसी घाटी में
भगवान का दर्शन करने से
सौ गुणा अधिक होता है सुकून
ज्यादा हल्का होता है मन-प्राण
असहाय लोगों का हाथ पकड़कर
समतल पर आगे का कदम लेना
वर्ण – वर्ग – जाति – धर्म की
समाज के बीच में यह भिन्नता
कंटक न हो किसी का, कहीं भी
जीव – जंतु, हर इंसान के साथ
प्यार का बंधन जोड़े रहे दुनिया में
मानवीय मूल्य खिल जाएँ
हर दिल में, समता के तल में
जन्म होता रहे मनुष्य का जग में
जाना, परखा जाय जिंदगी की परिभाषा
आचरण के आधार पर हो जावें मनीषा।