अंतस्-50वीं गोष्ठी
अंतस् की 50वीं काव्य-गोष्ठी 17 सितम्बर 23 को मशहूर और मारूफ़ शायर जनाब मासूम ग़ाज़ियाबादी जी की अध्यक्षता और अंतस् के परामर्शदाता सिद्धहस्त कवि-शायर डॉ आदेश त्यागी जी के सान्निध्य में नेहरू नगर, ग़ाज़ियाबाद स्थित गन्धर्व महाविद्यालय में बहुत ही हर्षोल्लास और भव्यता से संपन्न हुई|
अंतस् की अबाधित मासिक गोष्ठियों का सिलसिला अपने इस पचासवें पढ़ाव पर आ पहुँचा इस बात का सभी को गर्व व हर्ष रहा जो कवि-कवयित्रियों, शायर-शायरात सभी की उपस्थिति और काव्य-प्रस्तुति में झलका| मुख्य अतिथि डॉ उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ तथा बतौर विशिष्ट अतिथि मुंबई से पधारी डॉ दमयंती शर्मा ‘दीपा’ ने उत्सव की गरिमा में श्रीवृद्धि की|
वागीश्वरी के समक्ष मंचस्थ अतिथियों तथा उपस्थित कवि-वृन्द द्वारा दीप-प्रज्ज्वलन और माल्यार्पण के पश्चात श्री इन्द्रजीत सुकुमार जी द्वारा सरस, सुंदर वाणी-वंदना( स्वर दे, लय दे, नवल उपमान दे …)प्रस्तुत की गई|
तत्पश्चात संरक्षक श्री नरेश माटिया द्वारा डॉ आदेश त्यागी जी का मोती-माल द्वारा स्वागत-सम्मान किया गया| शाल, मोती-माल और सम्मान प्रतीक द्वारा मासूम जी, उर्वशी जी और दमयंती जी का विशिष्ट सम्मान नरेश माटिया जी, डॉ आदेश जी, श्रीमती अंशु जैन जी द्वारा किया गया| संस्था की परम्परा के तहत संस्था की अध्यक्ष डॉ पूनम माटिया द्वारा डॉ तारा गुप्ता जी का शाल और पुष्प हार द्वारा सम्मान किया गया|
वरिष्ठ उपाध्यक्ष अंशु जैन जी ने अपने स्वागत-उद्बोधन में भारत के यशस्वी प्रधान-मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, इस माह के अन्य महत्त्वपूर्ण दिवसों का उल्लेख करते हुए अंतस् की 50 वीं गोष्ठी की सभी को बधाई दी|
इनके अतिरिक्त सभी उपस्थित कवि-कवयित्रियों, शायर-शायरात का स्वागत-सम्मान महासचिव श्री दुर्गेश अवस्थी, कार्यकारी महासचिव श्री देवेन्द्र प्रसाद सिंह और अंशु जैन जी द्वारा किया गया| श्रीमती अनुपमा पाण्डेय ‘भारतीय’ (साहित्य नव सृजन)द्वारा भी मंचासीन अतिथियों को उपहार भेंट किये गये|
पूनम माटिया द्वारा अनुशासित, सुगठित एवं रोचक सञ्चालन में लगभग 30 स्थापित एवं नवल रचनाकारों ने उत्कृष्ट काव्य प्रस्तुतियाँ दीं|
कुछ अशआर बतौर बानगी ……….
मासूम ग़ाज़ियाबादी..
ज़रा-सी भूल से शीशा करीना छोड देता है/ कसीली बात पर बच्चा भी हंसना छोड देता है
इक ऎसा वक़्त आता है हिफ़ाज़त भूल कर अपनी/ शिकारी से परिन्दा खुद ही बचना छॊड देता है
डॉ आदेश त्यागी …
हाथों में मेरे बाल कर जो रख दिया दिया/ मन तब से मंत्र–मंत्र है, तन है दिया–दिया
जो माँगता तो माँगता भी क्या मैं उस से जब/ कुछ बोलने से पहले जिसने कह दिया, दिया
डॉ. पूनम माटिया…
मौन रहता नहीं मन की बात करता है/ दूर-पास जहाँ कहीं भी कुछ अच्छा हो
जाने वो कैसे याद रखता है, बखान करता है/ परिश्रम है बसा रग-रग में, बस वही दिन -रात करता है
(नरेंद्र मोदी जी को समर्पित कविता से)
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मिला है जबसे ख़त उनका मुझको/ तभी से धड़कन बढ़ी हुई है
अभी तो केवल महीना गुज़रा/ तमाम होगा ये साल कैसे
डॉ उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’
सच कहती हूं यार नहीं निभने वाला/ इक तरफ़ा ये प्यार नहीं निभने वाला
क़दम–क़दम पर रंग बदलती दुनिया में/ मुझ से हर किरदार नहीं निभने वाला
डॉ तारा गुप्ता ..
डूबी उसी की नाव जो लहरों से डर गया/ उतरा वही है पार जो तैराक बन गया
राजीव सिंघल..
ज़ख़्म को इक मरहम भी चाहिए था/ हे ख़ुदा ये भरम भी चाहिए था
हमें तो दर्दे-ग़म भी चाहिए था/ करम क्या है सितम भी चाहिए था
दानिश अयूबी..
फूल से नाज़ुक कहा जाता है बेटी को मगर/ हम ग़रीबों के लिए पत्थर से भी भारी हो गयीं
सोनम यादव..
बिन सलाखों की क़फ़स आंखें तेरी/ यूं ही चर्चे में नहीं आंखें तेरी
क़ैद कर लेती बिना अपराध के/ बेरहम हाकिम–सी हैं आंखें तेरी
रवि ऋषि..
बहुत रोए हैं तेरी याद की बंजर ज़मीनों पर/ सुना है बारिशों के बाद हरियाली निकलती है
नईम हिन्दुस्तानी..
अपनी ख़ामियों का भी जायज़ा ज़रूरी है/ दोस्तो! मुकाबिल में आईना ज़रूरी है
मनोज कामदेव..
बाती लकड़ी तेल घी, दियासलाई मोम।/ एक उजाले के लिए, किए ज़िंदगी होम।।
जगदीश मीणा जी..
मैं ख़ाक छान के बैठा हूं इस ज़माने की/ मुझे मिला न वो परवरदिगार मुद्दतसे
रजनीश त्यागी ‘राज़’ जी…
रईसों के ही घर की ये बपौती है नहीं साहिब/ हवा मुफ़लिस के घर में भी बड़ी शालीन मिलती है
देवेंद्र प्रसाद सिंह जी…
एक समय की बात बताऊँ, साम्यवाद के दूतों की/ एक गाँव में जोर-शोर से, सभा बुलाई जूतों की
गरजे माइक, भाषण–नारे, गूँजे दसो दिशाओं में/ जूतों के ही साथ ग़ज़ब, उत्साह दिखा नेताओं में
डॉ अवधेश तिवारी ‘भावुक’
हम जीतेंगे अवश्य, आओ! स्वयं से वादा करें/ हारने से डर लगे तो, कोशिश और ज़्यादा करें,
गर, नियति भी रूठ जाये, टूटे नहीं उम्मीद/ आओ ‘भावुक‘ हम इतना मजबूत इरादा करें..
डॉ नीलम वर्मा..
जनमानस मेंराम/ सूर्य सगर्व निरखता/ सरयु-साकेत समन्त/ वन्दन से वंदनवार तक/ रामबाण अरिहन्त
परवीन शग़फ़..
रक्खा है सब ने क़ैद, क़फ़स में मुझे मगर/ ज़िंदाँ में आफ़्ताब को लाती रही हूँ मैं
अरशद ‘अर्श’ बदायूनी..
सितारे चाँद फ़लक पर मचा रहे थे शोर/ उन्हें मैं आज ज़मीं पर उठा के लाया हूँ
डॉ दमयंती शर्मा ‘दीपा’, जनाब सरफ़राज़ अहमद ‘फ़राज़’, दुर्गेश अवस्थी, अनुपमा पाण्डेय ने भी काव्य सलिला को धारा-प्रवाह बनाये रखा और ये मनहर सिलसिला चला तो कब तीन घंटे बीते पता ही नहीं चला। उत्कृष्ट, मनोरंजक, देशभक्ति व अन्य सार्थक कविताओं, छंदों, गीत-ग़ज़लों से भरपूर रही ये मील का पत्थर गोष्ठी। सभी ने विविध विधाओं और रसों से ओतप्रोत भावप्रवण रचनाएं पढ़ीं। श्रोताओं ने भरपूर आनंद की अनुभूति की।