कविता
मै खाने में जाकर हम बैठ गये अकेले ही अेक तरफ
यक़ीन था अपनी तश्नगी पर पैमाना आ ही जायेगा मेरी तरफ
अच्छा किया हमने जो छेडा नही किस्सा अपनी मोहब्बत का
रुसव़ा हो जाते हम महफिल में देख अैसे रहे थे सब मेरी तरफ
बातें बुहत सी करनी थीं हमें आप से मिलकर
मगर ग़ज़ब अैसा हुआ आप ने देखा ही नहीं मेरी तरफ
आप मिल लेते तो राहत मिल जाती मेरे दिल को
ना ही ग़म ने छोडा मुझे ना ही खबर आपकी आई मेरी तरफ
कशमकश मेरे दिल की बुहत ही बढ गयी थी
ना आराम मिला दिल को ना ही मौत आई मेरी तरफ
आ जाती रौनक़ इस मरीज़ के ग़मगीन चेहरे पर मदन
आ जाते अगर आप खबर लेने मेरी अेक बार मेरी तरफ