धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

पयुर्षण महापर्व में धूपदशमी पर्व का पर्यावरण में योगदान

जैन मतानुसार पर्वाधिराज पयुषर्ण पर्व मंे धूप जिनालयों में चढाने से वायु प्रदुषण दूर होकर सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में शुद्ध वातावरण फैलता है। कहीं असाध्य रोगों की उत्पति नही होती। दशलक्षण धर्म मंे उत्तम संयम दिवस के दिन सभी जिनालयों में धूप क्षेपण की जाती है। प्रत्येक श्रावक धूप क्षेपण के लिये नये वस्त्र पहनकर मागलिक गीतांे के साथ प्रभु की आराधना करता है। धूपक्षेपण से शुद्ध वातावरण के साथ नई पीढ़ी में संस्कारों का बीजारोपण होता है। क्योंकि दस लक्षण धर्म दस दिन तक इन्द्रियों पर नियन्त्रण के साथ आस्था, विवेक एवं आत्म शुद्धि के लिये मनाये जाते है। पयुर्षण महापर्व का जैन धर्म में आध्यात्मिक महत्व है। आत्मा की शुद्धि भीतर के प्रदुषण के साथ बाहरी प्रदुषण को दूर करने का माध्यम है। धुप दशमी के दिन धुप क्षेपण से आस-पास स्वच्छता एवं आत्मिक सुख की अनुभूति होती है। धूप दशमी का पर्व भारत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, कनाड़ा, आस्टेलिया, जापान, जर्मनी एवं अन्य अनेकों देशों में जैन प्रवासीयों ने जैन मंदिरों का निर्माण किया। उस पवित्र स्थलों पर बड़ी तादाद में यह पर्व मनाया जाता है।
कवि उत्सव जैन नौगामा ने बताया कि वागड़ अंचल के समस्त जैन मंदिरों में धूप दशमी का महापर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। जहां दिगम्बर संतो, आर्यिकाओं का वर्षायोग चल रहा है वहंा श्रावक विशेष रूप से धूप दशमी का महत्व प्रवचनों के माध्यम से सुनकर अहोभाग्य समझते है तथा चार प्रकार के दान देकर श्रावक फुले नही समाते है। इसलिए धुप दशमी का पर्व पर्यावरण की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।

— कवि उत्सव जैन

उत्सव जैन ‘कवि’

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