शरारत
किसी गाँव में एक बहुत ही प्यारा-सा लड़का रहता था। नाम था उसका- अजय। यथा नाम तथा गुण। उसे जीतना उसके साथियों के वश की बात नहीं थी। चाहे वह खेल का मैदान हो, या पढ़ाई का क्षेत्र। न केवल पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद में, बल्कि षरारत करने में भी वह नम्बर वन था।
उसकी शरारतों में मुख्य रूप से किसी कुत्ते को ढेला मारना, किसी बैल, भैंस या घोडे़ पर चढ़ जाना, किसी लड़की की चोटी को खींच देना या किसी अनजान पथिक को गलत रास्ता बताना शामिल थे। इससे न केवल उसके माता-पिता और मित्र ही बल्कि शिक्षकगण भी परेशान थे। वे उसे बार-बार समझाते, पर अजय उनकी बातों को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देता था।
एक दिन अजय स्कूल से लौट रहा था। उसने देखा कि सड़क के किनारे कुत्ते का एक नन्हा-सा पिल्ला चुपचाप बैठा कूँ-कूँ कर रहा है। वह इतना प्यारा था कि उसे गोद में उठाने का दिल करता था।
एक समय था जब अजय कुत्ते-बिल्लियों को छूने से भी डरता था, पर अब उसकी झिझक खुल गई थी।
पिल्ले को देखकर उसे शरारत सूझी। वह चुपके से पिल्ले के पीछे चला गया और उसको पूँछ से पकड़ कर उठा लिया। हवा में लटका पिल्ला अपने को छुडाने के लिए हाथ-पाँव मारने लगा पर सफल नहीं हुआ। अजय उसे घड़ी के पेंडुलम की तरह हिलाने लगा, फिर हवा में ऊपर उछाल दिया। जमीन पर गिरते ही पिल्ला कूँ-कूँ करने लगा।
अजय को इसमें बड़ा मजा आया। वह ताली बजा-बजा कर हँसने लगा, तभी कोई पीछे से आकर उसके कान को पकड़ कर जोर से खींचने लगा। मुड़कर देखा तो उसके होश उड़ गए। कान खींचने वाला कोई और नहीं उसके क्लास टीचर थे। वे अजय की कारस्ताऩी बड़ी देर से देख रहे थे। अजय दर्द से बिलबिलाता हुआ बोला- ‘‘सर जी, प्लीज, मेरे कान छोड़ दीजिए।’’
‘‘क्यों ?’’ सर ने कड़क कर पूछा।
‘‘सर जी, बहुत दर्द हो रहा है। प्लीज छोड़ दीजिए ना, वरना कान उखड़ जाएगा।’’ अजय गिड़गिड़ाया।
‘‘नहीं उखडे़गा। अभी तो तुम्हारे कान पकड़ कर, उठा कर हवा में उसी प्रकार उछालना है, जिस प्रकार तुमने उस कुत्ते को उछाला था।’’ सर ने कहा।
‘‘साॅरी सर ! मुझसे आईन्दा ऐसी गलती नहीं होगी। मैं कसम खाता हूँ कि आज से, बल्कि अभी से किसी भी जीव-जंतु को परेशान नहीं करूँगा।’’ अजय ने कहा।
‘‘ठीक है, आज तो छोड़ देता हूँ, पर भविष्य में यदि तुम्हारी कोई भी शिकायत मिली, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। बेटा, हमेशा याद रखना, दर्द सिर्फ हमें ही नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतुओं तथा पेड-पौधों को भी होता है। इसलिए हमें उनसे अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।’’ सर ने समझाया।
‘‘यस सर ! मैं आपकी बातें हमेशा याद रखूँगा, और उस पर अमल भी करूँगा।’’ अजय ने कहा।
सचमुच, अब अजय पूरी तरह से बदल गया है।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा