सामाजिक

वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश

वसुधा और कुटुम्बकम् अर्थात धरती ही परिवार है , यह सनातन धर्म का मूल संस्कार/ विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। जो भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। संस्कृत भाषा के शास्त्रीय प्रमाणों में सर्वप्रथम यह श्लोक महा उपनिषद के छठवें अध्याय में वर्णित मिलता है। यह वाक्य दो शब्दों ‘वसुधा’ और ‘कुटुंब’ से मिलकर बना है। ‘वसुधा’ का अर्थ है पृथ्वी और ‘कुटुम्ब’ का अर्थ है परिवार अर्थात सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है। इसके लिए किसी एक व्यक्ति को श्रेय नहीं दिया जा सकता . ‘वसुधैव कुटुंबकम’ एक वेदांतिक सूक्ति है जो महा उपनिषद (VI. 71-73) में आती है। ये वेदों में लिखा था। भारत ”वसुधैव कुटुम्बकम् ” की अवधारणा को आत्मसात करता चलता है। इसका अर्थ है कि हम पूरी पृथ्वी को एक परिवार की तरह मानते हैं। फिर भी हम अपने ही परिवार के लगभग एक करोड़ लोगों को अपने से अलग रखकर उनसे भेदभाव कर रहे हैं। पूरे विश्व में भारतीय मूल के लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जिन्हें अन्य देशों का पासपोर्ट मिला हुआ है। योग मुद्राओं का अभ्यास करने के अलावा, व्यक्ति दूसरों के प्रति दया, करुणा और समझ विकसित करके ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन को भी अपना सकता है। इसमें हमारी साझा मानवता को स्वीकार करना और दुनिया को अपना विस्तारित परिवार मानना शामिल है। दुनिया में अलग-अलग देशों में शांति मिशन हो या फिर तुर्की के भूकंप जैसी आपदा हो, भारत अपना पूरा सामर्थ्य लगाकर हर संकट के समय मानवता के साथ खड़ा होता है, ‘मम भाव’ से खड़ा होता है.” प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति को अगर आप गौर से देखें तो पायेंगे कि वसुधैव कुटुम्बकम का ये सिद्धांत ही आचरण के मूल में है जिस कारण सहायता। (*साभार*) वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत श्लोक है जो मित्रता के लिए विश्ववाद का संदेश देता है। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश यह है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और सभी को एक दूसरे के साथ सम्मान और करूणा का व्यवहार करना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम का भारतीय जीवन दर्शन में प्रभाव परिलक्षित होता है। जिस पर भारतवासी गर्व महसूस करता है । गैरों को भी गले लगाना, दूसरे लोगों के दृष्टिकोण और भावनाओं को समझने की कोशिशें करना, दयालुता को बढ़ावा देना , प्यार दुलार,देना अपनत्व के भाव का बोध कराना, सकारात्मकता फैलाना, जरूरतमंदों की मदद करना ,लोगों को शिक्षित, संस्कारित करना, सभी लोगों के परस्पर जुड़ाव के बारे में अपने ज्ञान, विज्ञान और विश्वास का आदान प्रदान करने के साथ औरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना ही वास्तविक वसुधैव कुटुंबकम् का सार, संदेश, भावना, उद्देश्य है। धरती के हर प्राणी को अपने दैनिक जीवन में इस वसुधैव कुटुंबकम् के भावों को शामिल करना चाहिए, ताकि हम ऐसे, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के निर्माण में अपना योगदान एक व्यक्ति ही नहीं व्यक्तिगत इकाई के रूप में दे भी सकने के साथ खुद पर गर्व कर सकें, कि मैंने भी अपना योगदान दिया। जिससे विविधताओं को प्रदर्शित और सम्मानित करती भावनाओं के मजबूती मिल सके और हर कोई एक दूसरे से अपनेपन और जुड़ाव की भावना को महसूस करने के साथ प्रगाढ़ करने में हमारा भी कुछ योगदान सम्मिलित हो सके। यही वसुधैव कुटुम्बकम् का वास्तविक संदेश है। जिसको समाहित करते हुए हमारा देश भारत सगर्व आगे बढ़ रहा है और एक भारतीय होने के नाते जिसका हमें गर्व था,आज है और आगे भी रहेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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