कविता

अम्मा वापस आ गई

आज भी याद आ रही हैउन पलों की यादें,अनायास हमारा मिलनवो तुम्हारा पांव छूनाअधिकार भरी जिदकरअपने साथ घर तक ले जाना।रोना आ जाता है आज भीयाद आता है जब वो दृश्यचलचित्र सा घूमने लगता हैआंखों के सामने अक्सरतुम्हारा निश्छल प्यार दुलारतुम्हारे चेहरे पर बिखरी खुशियांऔर निश्चिंत भाव भरा गर्व।तुम्हारे अपनत्व में घुला अधिकार और कर्तव्यजिसे तूने तो अच्छे से निभायापर मुझे बहुत रुलाया।पर तेरा दोष तनिक भी नहीं हैशायद मेरी ही ये कमी हैया जिसकी कल्पना तक न थीउसे पाकर आंखें नम हो रही थीं,जो भी है तू अंजान अब न रह गई थी,मेरे लिए तो तू उस दिन से पूज्य हो गई ,मगर किसी हिटलर से कमआज भी नहीं लग रही है,आज भी अपनी शरारतों से नाक में दम कर रही है,बात बात में नखरे दिखा रही हैअपने अधिकारों का भरपूर लाभ ले रही हैमेरी फ़िक्र करने में तो तू आजमेरी दादी अम्मा की तरह हो गई है,आज ऐसा लगता है तू फिर से मेरी अम्मा बन वापस आ गई है,कुछ कहे बिना हीअपने कदमों में झुकने को मजबूर कर रही है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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