स्वास्थ्य

मल-मूत्र विसर्जन

स्वास्थ्य के लिए भोजन करना जितना महत्वपूर्ण है, मल-मूत्र त्यागना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। पहलीक्रिया से हम अपने शरीर को आवश्यक पदार्थों की आपूर्ति करते हैं, तो दूसरी क्रिया से हम अपने शरीरमें से अनावश्यक पदार्थों को बाहर निकालते हैं। स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है कि हमारे शरीर में येदोनों क्रियाएं सुचारु रूप से चलती रहें।
जब भी इनमें से किसी क्रिया में व्यवधान आता है या गड़बड़ होती है, तभी शरीर अस्वस्थ हो जाता है।वास्तव में समय पर मल-मूत्र का स्वाभाविक रूप से विसर्जन होना हमारे स्वास्थ्य का बैरोमीटर है। जबभी इसमें कोई अस्वाभाविकता का अनुभव हो, तो समझ लेना चाहिए कि हमारा स्वास्थ्य अपने रास्ते सेभटक रहा है। शरीर की अच्छी तरह सफाई हो इसके लिए हमें प्रतिदिन कम से कम तीन लीटर जलअवश्य पी लेना चाहिए।
लेकिन यह देखा गया है कि सामान्य लोग भोजन करने को जितना महत्व देते हैं, उसका अंश मात्र भीमल-मूत्र त्यागने को नहीं देते। वे इनको फालतू का बोझ समझते हैं और किसी अनिवार्य कर्मकांड कीतरह अनिच्छा से निबटा देते हैं। ऐसा रवैया उचित नहीं और ऐसा करना अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़करना है। जिस प्रकार हमने अपने भोजन आदि का समय निर्धारित किया है और अत्यन्त व्यस्तकार्यक्रम में से भी हम उसके लिए समय निकालते हैं, उसी तरह हमें मल-मूत्र विसर्जन के लिए भीअनिवार्य रूप से समय निकालना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि हमें दिन में कितनी बार मल-मूत्र का विसर्जन कब-कब करना चाहिए। इसकासीधा सा उत्तर यह है कि ष्जितनी बार खाना, उतनी बार पाखानाष् और ष्जितनी बार पीना, उतनी बारमूतना।ष् हम प्रायः दो बार पूर्ण भोजन करते हैं- दोपहर को 1 से 2 बजे के बीच और रात्रि 8 से 9 बजेके बीच। इसलिए हमें कम से कम दो बार मल विसर्जन के लिए अवश्य जाना चाहिए। अधिकांश लोगप्रातः 8-9 बजे जलपान भी करते हैं। पर उसे दोपहर के भोजन के साथ माना जा सकता है। भोजन सेविसर्जन योग्य मल बनने में लगभग 16 घंटे का समय लगता है। रात्रि को यह क्रिया थोड़ी धीमी होतीहै। इस प्रकार भोजन के उपरोक्त समय के अनुसार मल त्यागने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातः 5 से 6 बजेके बीच और सायं 3 से 4 के बीच है। अपनी सुविधानुसार इसे थोड़ा आगे पीछे किया जा सकता है।
अब रही मूत्र विसर्जन की बात। जब हम जल पीते हैं, तो वह 45 मिनट से एक घंटे के बीच पूरा छनकरमूत्र में बदल जाता है। उसी समय उसको त्याग देना अच्छा रहता है। सामान्यतया हम हर एक से डेढ़घंटे बाद जल पीते हैं, इसलिए हम जितनी बार भी जल पियें उसके एक घंटे बाद के आसपास मूत्रत्याग अवश्य कर देना चाहिए। ध्यान रखें कि यदि मल-मूत्र का समय पर त्याग नहीं किया जाएगा, तोवह मलाशय या मूत्राशय में पड़े रहकर हमारे रक्त को दूषित करने का ही कार्य करेगा। इसलिएमल-मूत्र के त्याग हेतु शौचालय या मूत्रालय जाने में हमें कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
दूसरी बात जो हमें ध्यान में रखनी चाहिए वह यह है कि हमें मल या मूत्र का विसर्जन करते समयअनावश्यक जोर नहीं लगाना चाहिए। उनको अपने आप ही निकलने देना चाहिए। आवश्यक होने परकुछ अधिक देर तक शौचालय में बैठा जा सकता है। मल त्यागते समय जोर लगाने से एक तो सफाईसही नहीं होती, दूसरे गुदा की बीमारियां जैसे बवासीर होने की संभावना बन जाती है। इसीप्रकार मूत्रत्याग करते समय जोर लगाने से पेशाब नली में सूजन, पथरी, मूत्रांग में जलन, गुर्दे में पथरी या दर्दआदि समस्यायें पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमें भूलकर भी मूत्र त्याग करते समय जोर नहीं लगानाचाहिए।
यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो मल-मूत्र विसर्जन की क्रिया स्वाभाविक रूप से होती रहेगी औरआप पूर्ण स्वस्थ बने रहेंगे।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com