सब कुछ भूल गए
कार स्कूटर जब से घर में है आया
भूल गए सब पैदल चलना
अनाज सब मिल रहे दुकानों पर
कोई नहीं चाहता अब खेत में काम करना
पीजा बर्गर खाने लगे अब सारे
अच्छा नहीं लगता अब घर का खाना
अहमियत रिश्तों की नहीं रही अब
भूल गए अब रिश्ता निभाना
पानी पीते हैं बिसलेरी का
बाबड़ी कुएँ से कौन अब लाये
ए सी लगा लिए घर में
अब पीपल बड़ की ठंडी हवा कौन खाये
फूलों की खुशबू भूल गए सब
डियो और इत्र लगा रहे
प्राकृतिक फूलों के स्थान पर
बनावटी फूलों से काम चला रहे
शहर में जाकर बस गए
कारखानों का धुआं खा रहे
गांव की प्यारी भीनी भीनी
मिट्टी की खुशबू को भूलते जा रहे
रोज़ चले जाते हैं रेस्टोरेंट में
मन की पसंद का खाना खा रहे
त्योहार मनाते नहीं मन से
पारंपरिक पकवान नहीं भा रहे
मोबाइल ने कर दिया काम खराब
भूल गए सब कुछ नहीं रहता याद
चिठी पत्री अब कोई नहीं लिखता
पढ़ना भूल गए हैं किताब
— रवींद्र कुमार शर्मा