गीत – दीवाली वाली रात है
जलते अलबत्ता लाखों दीपक संसार में।
आओ एक दीप जलाए इस प्यार में।
अनुकंपा की सौगात है।
दीवाली वाली रात है।
राजाओं की झोली में डाल दी है ज़िंदगी।
हर गोबिंद साहिब की है यही सच्ची बंदगी।
रहमत की बरसात है।
दीवाली वाली रात है।
चौदह वर्षों पश्चात श्री राम घर आए हैं।
हर्षता ने चाँद तारे आमद में सजाए हैं।
भरत दिखाई औक़ात है।
दीवाली वाली वाली रात है।
चौमुखे दीपक लट-लट थाली में हैं जलते।
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूजा में ढलते।
महालक्ष्मी की बात है।
दीवाली वाली रात है।
दुकानों में मिठाईयां एंव पटाखों का ही शोर है।
सूप बजाते नर-नारी, पैरों में भी लोर है।
आत्ममुग्ध जज़्बात है।
दीवाली वाली रात है।
देश के किसानों में आए खुशहाली फिर।
खिल-खिल जाएगी फूलों वाली डाली फिर।
’बालम‘ लौ की खैरात है
छीवाली वाली रात है।
— बलविन्दर ’बालम‘