लम्बी कहानी – ‘रखैली’ भाग – 2
सज्जाद की सहेली
हालाँकि सज्जाद की पूछी गई पहेली के कोई मायने नहीं थे। न ही उसकी शर्त मानने को कोई मजबूर हो सकता था फिर भी सारिका ने एक भरी महफ़िल में अपनी शिकस्त मान कर शर्त हारने के एवज़ में सज्जाद के लव प्रपोज़ल को कबूल कर लिया।
सारिका ने जो इतनी जल्दी एक शख्स का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो उसके पीछे उसकी खुद की शख्सियत थी। सारिका सोसाईटी में खुद को प्रोग्रेसिव और फैमनिस्ट घोषित कर चुकी थी और हमारे कलचर में तेजी से ये अघोषित नियम लागू हुआ है कि जो जितना सवर्णो को गाली देगा, देश के विकास में मीन – मेख निकलेगा, कौमी एकता के प्रोपेगेंडा पर मुसलमानो की तारीफ़ करेगा, गंगा जमुनी संस्कृति का बखान करगा, पडोसो मुल्क पाकिस्तान के कलाकारों और उनके रिवाज़ो के कसीदे गढ़ेगा – वह उतना ही ज्यादा प्रोग्रेसिव और फैमनिस्ट माना जायेगा।
सज्जाद मुस्लिम था।
पाकिस्तान का खबरनवीस था। कुछ कलाकार टाईप भी उसके भीतर मौजूद था। सज्जाद से दोस्ती करने में और उसका प्रेम प्रस्ताव कबूल करने से सारिका की फैमनिस्ट की छवि और मजबूत होने वाली थी।
वैसे भी सज्जाद एक सजीला और जवां मर्द था बस सारिका ने उसका प्रपोजल कबूल करके उसकी गर्लफ्रेंड बनना स्वीकार कर लिया। सज्जाद ने भी उसे अपनी महबूबा कहकर पुकारते हुए कहा ‘कि वो उसकी महबूबा और बेगम बनने से कहीं ज्यादा उसके लिए एक दोस्त है।
और यूँ अब सारिका महफ़िलो और बाजारों में सज्जाद के साथ उसकी सहेली के रूप में नजर आने लगी।
हालाँकि फैमनिस्ट अपने विचारो में स्त्रियों को हमेशा पुरुष बराबर मानती है या यूँ कहे तो उनके क्रांतकारी विचार उन्हें पुरुषों की तुलना में हमेशा इक्कीस अर्थात दो कदम आगे ही साबित करते हैं।
पर…
पर जब कोई फैमनिस्ट अपने विचारों की क्रांति की मशाल की आग बढ़ाने के लिए किसी अंतर्धार्मिक पुरुष को अपना बॉयफ्रेंड और शौहर बनाती है तो फिर वो विचारों में, तन्हाई में, बंद कमरे में, बिस्तर में उसके प्रति आज्ञाकारिता का भाव रखती है। कुछ फैमनिस्ट जो कुछ एटीट्यूड के चलते अपने पुरुष साथी के प्रति कुछ कम समर्पण कर पाती है उन्हें उनका पुरुष साथी या शौहर थोड़ी सी सख्ती दिखाकर आसानी से अपना आज्ञाकारी बना लेता है।
क्रमश:
–सुधीर मौर्य