रोटी
रोटी के फेर में
सब घूम रहा संसार
गाँव गाँव
शहर शहर भटक रहा इंसान
नचा रही यह जग को
अपने चारों ओर
कोई दो रोटी पाकर ख़ुश
किसी की मिटे न दो पाकर भी चाहत
लूट करा दे
ग़दर करा दे
जिसे मिले वो खिल जाये
जो न पाए वो रो जाये
दिन गुजरता
रात हो जाती
इस रोटी के चक्कर में
कोई भरपेट सो जाता
कोई भूखा ही रह जाता