कविता

रोटी

रोटी के फेर में

सब घूम रहा संसार

गाँव गाँव

शहर शहर भटक रहा इंसान 

नचा रही यह जग को

अपने चारों ओर

कोई दो रोटी पाकर ख़ुश

किसी की मिटे न दो पाकर भी चाहत

लूट करा दे

ग़दर करा दे

जिसे मिले वो खिल जाये

जो न पाए वो रो जाये

दिन गुजरता

रात हो जाती

इस रोटी के चक्कर में

कोई भरपेट सो जाता

कोई भूखा ही रह जाता

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020