कविता

भारत रत्न की आस

कुछ हमको ही नहींदुनिया को भी बताइएआखिर क्या तलाश है आपको।जब यही नहीं पतातब क्या तलाशते हो?दुनिया को दिखाते होआंखों में धूल झोंकते होखुद को गुमराह करते हो।इससे कुछ हासिल नहीं होगाक्योंकि हाथ कुछ भी नहीं लगेगा।अपना ही समय, श्रम व्यर्थ होगाअच्छा है पहले खुद से विचार कीजिएकि आखिर आपको तलाश क्यों और क्या हैऔर आपकी तलाश में गंभीरता कितनी है।वरना बेवजह मत भटकिएतलाश का दिखावा मत करिएखुद को बड़ा बुद्धिमान मान बेवकूफ मत बनिए।क्योंकि लोग तो जानते ही हैंकि आप कितने बुद्धिमान और कितने समझदार हैंआपको कुछ भी नहीं तलाश हैतलाश के बहाने बस समय पास हैआपकी यही आदत ही तो सबसे खास हैजिससे आपको भारत रत्न की आस है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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