लघुकथा : तर्पण
“माँ ! सब चीजें ध्यान से देख लो। कोई कमी न रह जाए। ” पिता के श्राद्ध की तैयारी में लगा कुपुत्र कृशकाय सावित्री जी को तर्पण के लिए लाए गए तिल, सुंदर वस्त्र, फल और मिठाई इत्यादि दिखाते हुए बोला।
खाने के सामान और सुंदर कपड़े देख, चिथड़ों में लिपटी भूखी प्यासी सावित्री जी बस इतना ही बोल पाईं, “बेटा, मेरा भी जीते जी तर्पण कर दे न !”
— अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’