कविता

धूप छांव

जैसे जिंदगी एक रेल हैवैसे ही धूप छांव का खेल हैदोनों ही चलते रहते हैंअपनी अपनी चाल सेआगे बढ़ते रहते हैं।दोनों में चोली दामन सा रिश्ता हैदोनों के बिना चलता नहीं काम है।एक दूजे के बिना दोनों अधूरे हैं एकदम नीरस, बेरंग, बेजान हैंजैसे जीवन का सांसों से नाता हैधूप छांव का भी एक दूजे से वैसा ही रिश्ता है।ठीक वैसे ही जिंदगी और धूप छांव में भीअलिखित अनुबंध हैजिनका सदियों से संबंध हैऔर अनंत काल तक रहेगा,कोशिश करने पर भीन कोई तोड़ सकता है न ही कभी तोड़ सकेगा,क्योंकि दोनों का संबंध अटूट हैनिज स्वार्थ से न इनका संबंध हैचाहे धूप और छांव में होया धूप छांव का जिंदगी से हो।ये चलता ही आ रहा हैऔर चलता ही रहेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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