गीतिका/ग़ज़ल

जलाओ दिया

दौलत की दुनियां, यहां दिख रही है
अदा बिक रही है, वफा बिक रही है

है सौदागरी का चलन इश्क में भी
अब तो यहां पर कजा बिक रही है

आरजू भी सजी अरमां भी टंगे हैं
खरीदो यहां हर खुशी बिक रही है

तिजारत लुटाओ पटाकों पर तुम भी
यहां हर जगह फुलझड़ी बिक रही है

जलाओ दिया या दिल को जला लो
अतिशी से भरी हर नजर बिक रही है

मुफलिसों का यहां पर्व होता नही है
दिवाली उन्हे अब कहां दिख रही है।

यहां पर है फैला कोई ‘‘राज’’ देखो
जीनत पे यहां दुनियां झुक रही है

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782