कविता

शराफत

आइए एक बार फिर मिलते हैंअब तो आखिरी बार मिलते हैं,फिर आपकी दुनिया से दूर चलते हैंआपकी सिरदर्दी का स्थाई समाधान करते हैं।वैसे भी कुछ खास नहीं है इस दुनिया मेंआप ही आप बस खास लगते हैंहम ही हैं जो आपको सलाम करते हैं।बड़ा असमंजस है आपकी दुनिया मेंअब आपकी दुनिया ही छोड़ देते हैं।एक अकेले से इतना परेशान हैं आपहम तो बस एक ही सवाल करते हैं।ईश्वर ने मुझे भेजा था आपसे मिलनेपर आप तो हमें बड़ा परेशान दिखते हैं,अपने मन का हाल खुलकर तो बताइएहमें ही खुदा समझिए हम हर समाधान देते हैं।हम आपकी दुनिया के तो मेहमान भर हैं पर आप तो धरती के लंबरदार दिखते हैं।बहुत घूमा सब कुछ देख लिया है हमनेबस ! आपके लिए हम बेकार लगते हैं ये मेरी शराफत है मेरा एहसान मानोजो अंतिम मिलन का अवसर दे रहे हैंपर ऐसा लगता है आप हमें समझ नहीं पा रहे हैं।हम ही हैं जो सबका हिसाब किताब रखते हैंमेरा काम पूरा हुआ हम अपने धाम चलते हैं।न आपसे दोस्ती न ही किसी से बैर रखते हैंफिर भी आपकी दुनिया में बहुत बदनाम होते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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